वैयक्तिक विघटन –
सामान्यतः किसी देश या समाज में स्थापित नियमों आदर्शों से विचलित हो जाना वैयक्तिक विघटन कहलाता है|
इलिएट एवं मेरिल (Elliott and Merrill) के अनुसार सामाजिक नियमों तथा संपूर्ण समाज के साथ व्यक्ति का तादात्मीकरण न होना ही वैयक्तिक विघटन है|
लेमर्ट (Lamert) के अनुसार वैयक्तिक विघटन वह दशा अथवा प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति के व्यवहार उसकी मुख्य भूमिका के अनुरूप नहीं रहता, बल्कि अपनी भूमिका के चुनाव में वह अनेक भ्रमों और संघर्षों का सामना करने लगता है|
वैयक्तिक विघटन एवं सामाजिक विघटन –
वैयक्तिक विघटन एवं सामाजिक विघटन दोनो एक दूसरे से संबंधित एवं अन्योन्याश्रित हैं| व्यक्ति जब समाज स्वीकृत मूल्यों एवं प्रतिमानों से विचलित हो जाता है तो इसे वैयक्तिक विघटन कहते हैं| विघटित व्यक्ति का सम्पर्क जब परिवार एवं समाज के अन्य लोगों से होता है तो दूसरा व्यक्ति या तो विघटित स्वभाव को अपना लेता है या विघटित व्यक्ति से प्रतिक्रिया स्वरूप (प्रतिशोधात्मक रूप से) विघटित व्यवहार करने लगता है| यह प्रक्रिया धीरे-धीरे कुछ व्यक्तियों को ही नहीं, अधिकांश व्यक्तियों के कार्य में बाधा उत्पन्न करती है, जिससे सामाजिक समस्या उत्पन्न हो जाती है| एक सामाजिक समस्या दूसरी समस्या को जन्म देती है जिसका परिणाम सामाजिक विघटन में होता है|
परन्तु इसके विपरीत प्रक्रिया भी देखने को मिलती है| तीव्र सामाजिक परिवर्तन, युद्ध, क्रांति, आतंकी घटना आदि के कारण अनेक सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं एवं सामाजिक विघटन प्रारम्भ हो जाता है| यह सामाजिक विघटन वैयक्तिक विघटन को जन्म देता है|
लेकिन – प्रश्न उठता है कि जो नवीन अविष्कार होते हैं जैसे – कॉपरनिकस ने दूरबीन का आविष्कार कर इस धारणा पर पश्चिम प्रश्न चिन्ह लगा दिया था कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर घूमता है, अनेक देश जो तानाशाही प्रवृत्ति रखते हैं उन सरकारों के विरुद्ध नागरिकों का प्रदर्शन, सती प्रथा, बाल-विवाह विरोध, समाज सुधार आंदोलन क्या वैयक्तिक विघटन है| इन्हीं विपरीत परिस्थितियों को समझने के लिए वैैयक्तिक विघटन को दो भागों में विभाजित किया गया है
(1) सृजनात्मक व्यक्तित्व (Creative Personality) –
जब समाज का कोई व्यक्ति समाज एवं समाज के भविष्य के प्रति अधिक भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है एवं समाज के लिए कुछ नया करना चाहता है, एेसे में वह प्रचलित मान्यताओं के अनुसार व्यवहार नहीं कर पाता एवं उसे वैयक्तिक विघटन की संज्ञा दी जाती है|
लेकिन सृजनात्मक व्यक्तित्व का सामाजिक मान्यताओं को दरकिनार करने का उद्देश्य समाज को एक नयी दिशा देना होता है| इसके अंतर्गत वैज्ञानिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक आदि आ जाते हैं| ऐसे व्यक्ति विशेष प्रतिभावान होते हैं एवं परिस्थितियों से किसी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं होते| सृजनात्मक वैयक्तिक विघटन सामान्यतः तीन स्वरूपों में दिखायी देता है –
(i) सामान्य नियमों से विपरीत – इसके अंतर्गत वे व्यक्ति शामिल होते हैं जो नयी खोज, नवाचार एवं अविष्कार की ओर उन्मुख होते हैं|
(ii) क्रांति – इसके अंतर्गत वे व्यक्ति शामिल होते हैं, जो समाज, देश में प्रचलित मान्यताओं एवं नियमों से किसी तरह सहमत नहीं होते|संपूर्ण समाज या सत्ता को परिवर्तित कर नवीन समाज की स्थापना करना चाहते हैं, जैसे – फ्रांसीसी क्रांति, औद्योगिक क्रांति आदि|
(iii) आंदोलन – ऐसे व्यक्ति जो समाज एवं सत्ता के आदर्शों एवं नियमों का तो अनुसरण करते हैं लेकिन समय के साथ कुछ सामाजिक बुराइयों या नियमों को परिवर्तित करना चाहते हैं, जैसे – राजा राममोहन राय द्वारा
बाल-विवाह, ईश्वरचंद्र विद्यासागर द्वारा सती प्रथा, सुंदरलाल बहुगुणा द्वारा वृक्षों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन किया जाना इसके अंतर्गत शामिल है|
(2) व्याधिकीय व्यक्तित्व (Pathological Personality) –
व्याधिकीय व्यक्तित्व का तात्पर्य व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक रोगों से ग्रसित होना है| ऐसा व्यक्ति शारीरिक या मानसिक रूप से सामान्य नहीं होता है| असामान्य व्यक्तित्व के कारण व्यक्ति का समाज में समायोजन नहीं हो पाता एवं समाज में सम्मान नहीं मिल पाता| अतः ऐसा व्यक्ति धीरे-धीरे हीन भावना का शिकार होता है एवं समाज से अलगाव की स्थिति बन जाती है| जो उसे समाज द्वारा स्थापित नियमों से विचलित करती है, परिणामस्वरूप वैयक्तिक विघटन हो जाता है, जैसे – व्यक्ति का अत्यधिक मोटा या पतला होना, शारीरिक या मानसिक विकार से युक्त होना आदि|