अधिकांश विद्वान समाजशास्त्र की विषय-वस्तु के अन्तर्गत सामाजिक प्रक्रियाओं ,सामाजिक संस्थाओं ,सामाजिक नियंत्रण एवं परिवर्तन को शामिल करते हैं | विभिन्न विद्वानों के मत निम्नलिखित हैं |
दुर्खीम के विचार (Views of Durkheim)
दुर्खीम ने विषय-वस्तु को निम्न तीन भागों में विभाजित किया-
(1) सामाजिक स्वरूपशास्त्र (Social Morphology) – इसके अन्तर्गत सामाजिक संरचना एवं स्वरूपों का अध्ययन किया जाता है |
(2) सामाजिक शरीरशास्त्र(Social Physiology)— इसके अन्तर्गत कानून ,धार्मिक विश्वास ,अर्थव्यवस्था, भाषा आदि का अध्ययन किया जाता है |
(3) सामान्य समाजशास्त्र (General Sociology)— इसके अन्तर्गत उन सामान्य सामाजिक नियमों को ज्ञात करने पर जोर दिया जाता है जो समाज की निरंतरता के लिए आवश्यक हो |
गिन्सवर्ग के विचार (Views of Ginsberg)
गिन्सवर्ग ने समाजशास्त्र की विषय-वस्तु के चार प्रकारों की चर्चा की –
(1) सामाजिक स्वरूपशास्त्र (Social Morphology) — इसके अन्तर्गत सामाजिक संरचना के निर्माण में योगदान देने वाली विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है, जैसे — जनसंख्या का गुण एवं आकार |
(2) सामाजिक नियंत्रण (Social Control) — इसके अन्तर्गत सामाजिक जीवन को नियंत्रित करने वाले विषयों को शामिल किया जाता है , जैसे – जनरीति ,प्रथा, परम्परा ,कानून ,धर्म आदि |
(3) सामाजिक प्रक्रियायें (Social Processes) – इसके अन्तर्गत सामाजिक संबंधों का निर्माण करने वाली अंतः क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है ,जैसे सहयोग प्रतिस्पर्धा संघर्ष एकीकरण आदि |
(4) सामाजिक व्याधिकी (Social Pathology) – इसके अन्तर्गत समाज को विघटित करने वाली या सामाजिक समस्याएं उत्पन्न करने वाली दशाआें का अध्ययन किया जाता है, जैसे – अपराध ,निर्धनता ,बेकारी ,पारिवारिक विघटन ,सामुदायिक विघटन आदि |
एलेक्स इंकेल्स के विचार (Views of Alex Inkeles)
एलेक्स इंकेल्स (Alex Inkeles) ने अपनी पुस्तक व्हाट इज सोशियोलॉजी (What is Sociology) में समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को चित्रित करने के लिए तीन मार्गों की चर्चा की –
(1) ऐतिहासिक पथ (Historical Path)
(2) अानुभविक पथ (Empirical Path)
(3) विश्लेषणात्मक पथ (Analytical Path)
समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को निम्नलिखित रुप से समझा जा सकता है –
(1) मानव संस्कृति एवं समाज का अध्ययन |
(2) सामाजिक जीवन की प्राथमिक इकाइयों का अध्ययन जैसे – सामाजिक समूह ,समुदाय समितियाँ ,जनसंख्या आदि |
(3) मूलभूत सामाजिक संस्थाओं का अध्ययन ,जैसे -परिवार ,नातेदारी ,आर्थिक, राजनीतिक ,शैक्षणिक ,धार्मिक संस्थाएं |
(4) मूलभूत सामाजिक प्रक्रियाओं का अध्ययन ,जैसे- विभेदीकरण ,स्तरीकरण ,सहयोग ,संघर्ष, समाजीकरण, सामाजिक नियंत्रण ,विचलन ,सामाजिक एकीकरण, सामाजिक परिवर्तन आदि |
समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा