Difference between Subject matter and Scope of Sociology| समाजशास्त्र की विषय वस्तु एवं अध्ययन क्षेत्र में अंतर
समाजशास्त्र की विषयवस्तु का तात्पर्य उन निश्चित विषयों से है ,जिसका अध्ययन समाजशास्त्र के अंतर्गत किया जाता है, जैसे – सामाजिक संबंध, विचलन, एकीकरण आदि का अध्ययन समाजशास्त्र की विषय वस्तु है जबकि अध्ययन क्षेत्र का तात्पर्य उन संभावित सीमाओं से है, जहाँ तक समाजशास्त्र के किसी विषय (Topic) का अध्ययन किया जा सकता है ,जैसे – किस तरह के सामाजिक संबंधों का अध्ययन हो, यह उसके अध्ययन क्षेत्र को दर्शाता है |स्पष्ट है कि सामाजिक संबंधों का अध्ययन समाजशास्त्र की विषय वस्तु है किंतु किस प्रकार के सामाजिक संबंधों का अध्ययन किया जाय, सभी प्रकार के या कुछ विशेष संबंधों का, यह उसका अध्ययन क्षेत्र है |
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समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र या अध्ययन क्षेत्र
समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र को लेकर विद्वानों में मतभेद है | अनेक समाजशास्त्रियों द्वारा भिन्न-भिन्न मत व्यक्त किए गए हैं , जिसे प्रमुख रुप से दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है –
(1) स्वरुपात्मक संप्रदाय
(2) समन्वयात्मक संप्रदाय
स्वरुपात्मक संप्रदाय के अनुसार समाजशास्त्र एक विशेष विज्ञान है एवं इसमें कुछ विशेष प्रकार के सामाजिक संबंधों का ही अध्ययन होना चाहिए |
समन्वयात्मक संप्रदाय के अनुसार समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है एवं सामाजिक संबंधों या समाज का समग्रता में अध्ययन होना चाहिए |
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स्वरुपात्मक संप्रदाय (Formalistic School) –
यह संप्रदाय समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र को अत्यंत सीमित एवं विशिष्ट मानता है | यह केवल उन्हीं समस्याओं या सामाजिक पक्षों तक समाजशास्त्र के अध्ययन को सीमित करना चाहता है ,जिसका अध्ययन अन्य सामाजिक विज्ञानो द्वारा नहीं किया जाता है | इस संप्रदाय में मुख्य रुप से जॉर्ज सिमेल, टॉनीज , वॉन विज, वीरकान्त, मैक्स वेबर शामिल है |
सिमेल के विचार (Views of Simmel) –
सिमेल के अनुसार सभी प्राकृतिक एवं सामाजिक घटनाओं के दो पक्ष होते हैं –
(1) स्वरूप (Form) (2) अंतर्वस्तु (Content)
स्वरूप का अध्ययन अंतर्वस्तु से पृथक कर स्वतंत्र रुप से किया जा सकता है | क्योंकि सभी सामाजिक विज्ञान में अंतर्वस्तु पक्ष का अध्ययन होता है ,लेकिन किसी भी विज्ञान द्वारा स्वरुप का अध्ययन नहीं होता है | यदि समाजशास्त्र स्वरुप का अध्ययन करें तो यह अन्य सामाजिक विज्ञानो से भिन्न एवं विशिष्ट हो सकता है | सिमेल ने संघर्ष ,सहयोग ,प्रतिस्पर्धा, एकीकरण आदि को सामाजिक संबंधों के स्वरुप से संबोधित किया एवं इन पक्षों से जुड़े राजनीतिक, आर्थिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक इत्यादि को अंतर्वस्तु से संबोधित किया | सिमेल के अनुसार समाजशास्त्र को स्वरुप का ही अध्ययन करना चाहिए |
मैक्स वेबर के विचार (Views of Max Weber) –
वेबर के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन है | सामाजिक क्रिया से वेबर का तात्पर्य –
(1) वह क्रिया जो दूसरे लोगों के व्यवहारों से प्रभावित होती है |
(2) वह क्रिया जो अर्थ पूर्ण हो |
वेबर ने एक तरफ से की गई क्रिया को सामाजिक क्रिया नहीं माना , जैसे – जादूगर द्वारा जादू का खेल दिखाना या पूजा करना | तात्पर्य है कि सामाजिक क्रिया वही है जिसका संदर्भ व्यक्ति हो तथा करने वाला समाज से प्रभावित हो तथा समाज को प्रभावित करे | वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया समस्त सामाजिक संबंधों का एक विशेष भाग है | अतः सामाजिक क्रिया के अध्ययन द्वारा समाजशास्त्र को एक विशेष विज्ञान बनाया जा सकता है |
वीरकांत के विचार (Views of Vierkant) –
इनके अनुसार समाजशास्त्र मानसिक संबंधों का अध्ययन है जो एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से अथवा समूह में बाँधता है | इस तरह व्यक्तियों के बीच के संबंध जैसे – प्रेम ,घृणा, असंतोष आदि संबंधों के द्वारा होता है जिसके द्वारा सहयोगी एवं विरोधी संबंध बनते हैं | वीरकांत के अनुसार समाजशास्त्र के द्वारा सिर्फ इसी तरह के संबंधों का अध्ययन होना चाहिए |
वॉन विज के विचार (Views of Von Wiese) –
वॉन विज के अनुसार समाजशास्त्र एक विशिष्ट सामाजिक विज्ञान है जो कि मानवीय संबंधों के स्वरुपों का अध्ययन है और यही उसका विशिष्ट क्षेत्र है | वान विज ने सामाजिक संबंधों के 650 स्वरूपों की चर्चा की है | उनके अनुसार समाजशास्त्र को इन्ही स्वरूपों का अध्ययन करना चाहिए |
टॉनीज के विचार (Views of Tonnies) –
उनके अनुसार समाजशास्त्र शुद्ध एवं स्वतंत्र विज्ञान है | सामाजिक संबंधों के स्वरुपों के आधार पर टॉनीज ने समाज को दो भागों में विभाजित किया –
(1) जीमेनशैफ्ट (समुदाय)
(2) जेसेलशैफ्ट (समिति)
टॉनीज के अनुसार समाजशास्त्र का उद्देश्य इन्हीं दो तरह की श्रेणियों के अंतर्गत सामाजिक संबंधों के स्वरुपों का अध्ययन करना है |
इसकी आलोचना में सोरोकिन कहते हैं कि भौतिक वस्तुओं के अंतरवस्तु बदलने पर स्वरुप में कोई परिवर्तन नहीं आता | लेकिन समाज में ऐसा नहीं होता | हम किसी सामाजिक संरचना को नहीं जानते जिसके सदस्यों में परिवर्तन हो लेकिन उसके स्वरुप में कोई परिवर्तन न हो | उदाहरण के लिए यदि अमेरिकी समाज में अमेरिकी लोगों के बजाय चीनी समुदाय या अफ्रीका के बुशमैन के लोग आ जाएं तो क्या अमेरिकी समाज के स्वरुप में कोई बदलाव नहीं होगा ?
समन्वयात्मक संप्रदाय (Synthetic School) –
इस संप्रदाय के प्रमुख विचारक दुर्खीम, सोरोकिन, हॉबहाउस, गिन्सबर्ग आदि हैं | इन विद्वानों का मत है कि
समाज के विभिन्न भाग एक दूसरे से संबंधित एव अन्तर्निर्भर है | अतःसमाजशास्त्र में संपूर्ण समाज का सामान्य अध्ययन आवश्यक हो जाता है |
दुर्खीम के विचार (Views of Durkheim) –
दुर्खीम के अनुसार सामाजिक तथ्य जैसे – परम्परा ,लोकाचार , प्रथा आदि के आधार पर समाज में कुछ सामूहिक विचारधाराएं बन जाती हैं , जिसे वे सामूहिक प्रतिनिधित्व या प्रतिनिधान (Collective Representation) कहते हैं | दुर्खीम के अनुसार समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधान का विज्ञान है ,और इसके द्वारा समाज का सामान्य अध्ययन किया जाता है |
सोरोकिन के विचार (Views of Sorokin) –
सोरोकिन के अनुसार प्रत्येक सामाजिक विज्ञान एक दूसरे पर किसी न किसी रुप से निर्भर हैं | समाजशास्त्र इन्हीं पारस्परिक संबंधों या उनके सामान्य पक्षों का अध्ययन करता है | सोरोकिन इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैं –
आर्थिक संबंध —- a, b, c, d, e, f
राजनीतिक संबंध —- a, b, c, g, h, i
धार्मिक संबंध —- a, b, c, j, k, l
वैज्ञानिक संबंध —- a, b, c, m,n,o
मनोरंजनात्मक संबंध —- a, b, c, p, q, r
उपर्युक्त में a, b, c ऐसे तत्व है जो सभी विषयों में विद्यमान है | सोरोकिन के अनुसार समाजशास्त्र इन्हीं सामान्य तत्वों का अध्ययन करता है | निष्कर्ष अतः कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र के विषय क्षेञ से संबंधित दोनों ही दृष्टिकोण (स्वरुपात्मक एवं समन्वयात्मक ) एकाकी हैं | समाजशास्त्र न तो केवल विशिष्ट सामाजिक संबंधों का अध्ययन करता है और न ही सामान्य सामाजिक प्रघटनाओं का | दोनों प्रकार का अध्ययन परिस्थितिजन्य होता है | अतः समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र के अंतर्गत सामान्यता एवं विशिष्टता दोनों का अध्ययन किया जाता है |
FAQ: Subject matter and Scope of Sociology
समाजशास्त्र की विषयवस्तु क्या है ?
समाजशास्त्र की विषयवस्तु का तात्पर्य उन आयामों से है ,जिसका अध्ययन समाजशास्त्र में किया जाता है, जैसे – अंतःक्रिया, अपराध, समूह, संस्कृति आदि
विषयवस्तु और कार्य क्षेत्र में क्या अंतर है ?
विषयवस्तु का तात्पर्य उन निश्चित प्रकरणों से है जिसका समाजशास्त्र अध्ययन करता है | किस तरह के प्रकरण का अध्ययन हो, यह समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र को दर्शाता है | उदहारण के लिए : सामाजिक समूह का अध्ययन समाजशास्त्र की विषयवस्तु को दर्शाता है जबकि किस तरह के सामाजिक समूह जैसे- सकारात्मक या नकारात्कम का अध्ययन हो यह उसके कार्य क्षेत्र को दर्शाता है |
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