सामाजिक समूह
मनुष्य का जीवन वास्तव में सामूहिक जीवन है | मनुष्य को सामाजिक प्राणी कहने का तात्पर्य भी यही है कि वह समूह में रहता है | प्रत्येक व्यक्ति का जन्म समूह में ही होता है एवं समूह के माध्यम से ही वह अपनी आवश्यकता की पूर्ति एवं पूर्ति करने के तरीके को सीखता है |इस तरह मनुष्य का जीवन समूह ( जैसे – परिवार) की सदस्यता से ही शुरू होता है | जॉनसन (Johnson) के अनुसार समाजशास्त्र वह विज्ञान है ,जो समूहों का अध्ययन करता है |
समूह के लिए एक शर्त यह है कि सहयोगी सामाजिक संबंधों को ही प्राथमिकता देंगे, अगर संघर्ष दिखायी पड़ने लगे तो उसे समूह की जगह समाज कहना सही होगा |
समूह तथा सामाजिक समूह में अंतर है | समूह शब्द का प्रयोग हम व्यक्तियों के संग्रह के लिए करते हैं, लेकिन सामाजिक समूह में सामाजिक अंतःक्रिया (Social interaction) या सामाजिक संबंध (Social relationship) का होना आवश्यक है | सामाजिक समूह निर्माण के चरण को निम्नवत् देखा जा सकता है –
(1) एकत्रीकरण (Aggregate)
(2) सामाजिक श्रेणी (Social category) या सांख्यिकीय समूह (Statistical group)
(3) समाजमूलक समूह (Societal group) या समूहता (Collectivity)
(4) सामाजिक समूह (Social group)
(5) समितीय समूह (Associational group)
रॉबर्ट बीरस्टीड (Robert Bierstedt) ने अपनी पुस्तक सोशल आर्डर ( Social Order) में स्वजातीय चेतना (Consciousness of kind) , सामाजिक अंतःक्रिया (Social interaction) एवं सामाजिक संगठन (Social organization) के आधार पर समूह को निम्न चार भागों में वर्गीकृत किया –
(1) सामाजिक श्रेणी (Social category) – सामाजिक श्रेणी व्यक्तियों का संग्रह है, जिनमें कुछ साझी विशेषताएं पायी जाती हैं | इनमें स्वजातीय चेतना , सामाजिक अंत:क्रिया एवं सामाजिक संगठन नहीं पाया जाता है , जैसे – उम्र एवं लिंग (Age and Sex) या समान व्यवसाय के आधार पर समूह |
(2) समतामूलक समूह या समूहता (Societal group or Collectivity) – इस समूह का निर्माण समान लक्षणों के आधार पर ही नहीं बल्कि स्वजातीय चेतना के समावेश होने पर होता है , लेकिन सामाजिक अंतःक्रिया एवं सामाजिक संगठन की अनुपस्थिति रहती है | लेकिन इसमें अंतःक्रिया को जन्म देने की पूर्ण क्षमता पायी जाती है , इसलिए इसे सामाजिक समूह की पूर्ववर्ती अवस्था कहा जाता है , जैसे – जाति |
(3) सामाजिक समूह (Social group) – सामाजिक समूह में स्वजातीय चेतना के साथ सामाजिक अंतःक्रिया भी पायी जाती है | सामाजिक समूह का निर्माण कुछ मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होता है, इसलिए परिवार को समाजिक समूह का आदर्श उदाहरण माना जाता है |
आगबर्न एवं निमकॉफ (Ogburn and Nimkoff) के अनुसार - जब कभी दो या दो से अधिक व्यक्ति एकत्रित होते हैं एवं एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं तो समाजिक समूह का निर्माण करते हैं |
(4) समितीय समूह (Associational group) – जब स्वजातीय चेतना के साथ अंतःक्रिया एवं अंतःक्रियाओं का संगठित रूप सामने आने लगता है तब उसे समितीय समूह कहते हैं | सामाजिक समूह में व्यक्ति की सामान्य आवश्यकता की पूर्ति होती है जबकि समितीय समूह द्वारा व्यक्ति अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करता है |
बीरस्टीड ने अपने द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण में एकत्रीकरण (Aggregate) का प्रयोग नहीं किया है ,जबकि एंथोनी गिडेन्स (Anthony Giddens) के अनुसार एकत्रीकरण की चर्चा के बिना सामाजिक समूह की चर्चा नहीं हो सकती | एकत्रीकरण समूह निर्माण की प्रारंभिक अवस्था है |
एकत्रीकरण (Aggregate)
यह व्यक्तियों का एक जगह एक समय में इकट्ठा होना है | लेकिन एक दूसरे से किसी तरह का सामाजिक संबंध नहीं पाया जाता हैं , जैसे ट्रेन में यात्री |
बोटोमोर के अनुसार सामाजिक समूह की चर्चा के लिए एकत्रीकरण ,सामाजिक श्रेणी तथा समता मूलक समूह की चर्चा करना आवश्यक नहीं है , इसके लिए उन्होंने अर्ध समूह (Quasi group) या आभासी समूह (Potential group) शब्द का प्रयोग किया है एवं इसके चार उदाहरण का उल्लेख करते हैं –
वर्ग (Class), प्रस्थिति समूह (Status group), आयु समूह(Age group), लिंग समूह (Sex group)
समूहों का वर्गीकरण (Classification of groups)
प्राथमिक एवं द्वितीयक समूह (Primary and secondary group) –
प्राथमिक समूह (Primary group) -प्राथमिक समूह एक छोटा सामाजिक समूह है जिसके सदस्य व्यक्तिगत एवं करीबी संबंध में बँधे रहते हैं , जैसे – परिवार ,बचपन के मित्र आदि |
सर्वप्रथम सी. एच. कूले (C. H. Cooley) ने अपनी पुस्तक सोशल ऑर्गनाइजेशन (Social Organisation) में प्राथमिक समूह शब्द का प्रयोग किया जिसे वे प्राथमिक संबंधों के आधार पर व्याख्यायित करते हैं | कूले के अनुसार प्राथमिक संबंध वे संबंध हैं जिसमें आमने सामने का सहयोग एवं घनिष्ठता हो (Face to face association and cooperation predominates) | प्राथमिक संबंधों के आधार पर जो समूह विकसित होता है उसे कूले प्राथमिक समूह कहते हैं |
कूले के अनुसार प्राथमिक समूह से मेरा तात्पर्य वे समूह जिसमें आमने-सामने के घनिष्ठ सहयोग हो, वे बहुत मायने में प्राथमिक हैं लेकिन मुख्य रूप से सामाजिक प्रकृति एवं व्यक्ति के आदर्श निर्माण करने का आधार है (By primary group I mean those characterized by intimate face to face association and cooperation. They are primary , in several sense but chiefly in that they are fundamental in framing the social nature and ideals of the individuals.)
प्राथमिक समूह मानसिक आवश्यकता की पूर्ति ,अत्यधिक घनिष्ठता तथा अनौपचारिकता को व्यक्त करता है | कूले ने परिवार , क्रीड़ा समूह एवं पड़ोस को प्राथमिक समूह माना है | फेयरचाइल्ड के अनुसार प्राथमिक समूह की अधिकतम संख्या 50 हो सकती है |
प्राथमिक समूह की विशेषताएं (Characteristics of primary group)
(1) आमने-सामने के संबंध |
(2) हम की भावना का होना |
(3) समूह के आकार का छोटा होना |
(4) सदस्यों के शारीरिक समीपता का होना |
(5) संबंधों का लंबे समय तक बना रहना |
(6) वैयक्तिक या अनौपचारिक संबंधों का होना |
अर्ध-प्राथमिक समूह (Quasi Primary Group) – कूले ने पाया कि कुछ समूह प्राथमिक समूह की संपूर्ण शर्तों को पूरा नहीं करते एवं प्राथमिक तथा द्वितीयक दोनो समूह की विशेषताओं का मिश्रण प्रदर्शित करते हैं ,ऐसे समूह को उन्होंने अर्ध-प्राथमिक समूह से संबोधित किया | इसके अंतर्गत उन्होंने नगरीय पड़ोस , कॉलेज , विश्वविद्यालय तथा एन. सी. सी. (N. C. C.) के छात्रों के समूह को शामिल किया |
द्वितीयक समूह (Secondary group)
प्राथमिक समूह एवं द्वितीयक समूह की अवधारणा कूले की मानी जाती है ,जबकि उन्होंने कभी द्वितीयक समूह शब्द का प्रयोग नहीं किया ,लेकिन वे प्राथमिक समूह एवं इसकेे विपरीत एक अन्य बड़े समूह की चर्चा करते हैं जिसे किंग्सले डेविस (Kingsley Davis) ने द्वितीयक समूह कहा है |
द्वितीयक समूह भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति , कम घनिष्ठता तथा औपचारिकता को व्यक्त करता है | द्वितीयक समूह में हम सहयोग प्राप्त करते हुए भी सहयोगी की पहचान से अपरिचित रह सकते हैं इसलिए द्वितीयक समूह का आकार वृहद् ही नहीं अनिश्चित भी होता है , जैसे – मैगजीन या ब्लॉग पढ़ने वाले को हो सकता है लेखक न जानता हो |
डेविस के अनुसार द्वितीयक समूह को प्राथमिक समूहों के विपरीत कहकर परिभाषित किया जा सकता है| रॉबर्ट बीरस्टीड (Robert Bierstedt) के अनुसार वे सभी समूह द्वितीयक हैं, जो प्राथमिक नहीं है | घनिष्ठता के अभाव के कारण पॉल एच.लैंडिस (Paul H. Landis) ने द्वितीयक समूह को "शीत जगत" (Cold World) के प्रतिनिधि कहा है |
द्वितीयक समूह की विशेषताएँ (Characteristics of Secondary group)
(1) समूह के आकार का बड़ा होना |
(2) निश्चित उद्देश्य का होना |
(3) सदस्यों में औपचारिक तथा अप्रत्यक्ष संबंध का होना |
(4) ऐच्छिक सदस्यता का होना |
(5) व्यक्ति की प्रस्थिति उसकी भूमिका द्वारा निर्धारित |
अंत: समूह एवं वाह्य समूह (In-group and out-group) –
समनर (Sumner) ने अपनी पुस्तक फॉकवेज (Folkways) में लगाव एवं सामाजिक दूरी के आधार पर समूह को दो भागों अंतः समूह एवं वाह्य समूह में विभाजित किया | अंतः समूह वह समूह है जिसमें व्यक्ति अपनी पहचान सुनिश्चित करता है | अंतः समूह के लोगों में अपने सदस्यों के प्रति लगाव ,सहानुभूति एवं प्रेम रहता है साथ ही लोगों में नृजातिकेंद्रवाद (Ethnocentrism) की भावना भी रहती है |अंतः समूह में घनिष्ठता ही नहीं पाई जाती बल्कि वाह्य समूह के प्रति घृणा या गैर-मैत्रीपूर्ण व्यवहार भी देखने को मिलता है ,जिसकी अभिव्यक्ति सामाजिक दूरी पर आधारित व्यवहार में दिखाई पड़ता है , जैसे – कोई व्यक्ति कहता है हम शहरी हैं देहाती नहीं |
व्यक्ति जिस समाज में पैदा हुआ है वहां के मूल्य , प्रतिमान , प्रथाएं आदि उसे सहज महसूस होते हैं ,लेकिन जब व्यक्ति दूसरे सामाजिक परिवेश में जाता है तो अपने समाज से भिन्न नियमों से वह असहज महसूस करने लगता है |अब व्यक्ति जाने-अनजाने में अपने समाज की अन्य समाज से तुलना करने लगता है तब स्वाभाविक रुप से अपना समाज उसे श्रेष्ठ एवं अन्य निम्न लगने लगता है यही अपना समाज या समूह उस व्यक्ति के लिए अंतः समूह होता है ,जैसे अपना परिवार ,अपना धार्मिक समूह ,वर्ग ,जाति आदि |
जिस समूह को व्यक्ति अपने समूह के रूप में स्वीकार नहीं करता है एवं उस समूह के प्रति कम या अधिक वैमनस्यपूर्ण या गैर-मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखता है तब उस व्यक्ति के लिए वह समूह वाह्य समूह हो जाता है | यह सामाजिक व्यवहार में भी दिखायी देता है , जैसे हम हिंदी भाषी है अंग्रेजी भाषी नहीं |अंतः समूह एवं बाह्य समूह की सीमाएं निश्चित नहीं होती है | व्यक्ति की भावनाओं के घटने या बढ़ने से इसका आकार भी घटता – बढ़ता रहता है ,जैसे स्कूल के समय जो अंतः समूह है वह कॉलेज में पहुंचते बड़ा हो जाता है एवं विश्वविद्यालय में और बड़ा हो जाता है |
नृजातिकेंद्रवाद (Ethnocentrism)
यह समनर की अवधारणा है | जब हम भिन्न समूहों के प्रतिमानों ( प्रथा, परम्परा आदि ) की तुलना उस समूह या समाज के मूल्यों (आदर्शों ) के अंतर्गत न करके स्वयं के समूह के मूल्यों के तहत करते हैं, तब भिन्न समाज के मूल्य एवं प्रतिमान स्वयं ही निम्न हो जाते हैं एवं स्वयं के मूल्य एवं प्रतिमान श्रेष्ठ हो जाते हैं | इसे ही नृजातिकेंद्रवाद कहते हैं | समनर के अनुसार नृजातिकेंद्रवाद अंतःसमूह के भीतर चलने वाली स्वाभाविक प्रक्रिया है |
संदर्भ समूह (Reference group)
संदर्भ समूह शब्द (Term) का प्रयोग सर्वप्रथम हरबर्ट हाइमन (Herbert Hyman) ने अपनी पुस्तक आर्चीव्स ऑफ साइकोलॉजी (Archives of Psychology) में किया | इस शब्द का प्रयोग उन्होंने उस समूह के लिए किया जिसके आधार पर व्यक्ति अपनी स्थिति का मूल्यांकन करता है | लेकिन संदर्भ समूह को सिद्धांत एवं समाजशास्त्रीय स्वरूप प्रदान करने का कार्य रॉबर्ट के. मर्टन (Robert K. Merton) ने अपनी पुस्तक सोशल थियरी एण्ड सोशल स्ट्रक्चर (Social Theory and Social Structure) में किया |
संदर्भ समूह वह समूह है जिसे मानक समझकर व्यक्ति स्वयं के व्यवहार का मूल्यांकन करता है एवं मानसिक रूप से उस समूह का सदस्य बनने की इच्छा होती है ,जैसे बेरोजगार व्यक्ति द्वारा रोजगार प्राप्त व्यक्ति के समूह को संदर्भ समूह के रूप में देखना |
मर्टन ने संदर्भ समूह के सिद्धांत को स्पष्ट करने के लिए दो अवधारणाओं (1) सापेक्षिक वंचना (Relative Deprivation) (2) पूर्वानुमानित समाजीकरण (Anticipatory Socialization) का प्रयोग किया |
सापेक्षिक वंचना का प्रयोग सर्वप्रथम सैमुएल स्टॉफर (Samuel Stouffer) ने अपनी पुस्तक दी अमेरिकन सोल्जर (The American Soldier) में किया ,जिसे उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों मे व्याप्त असंतोष को स्पष्ट करने के लिए किया था, जबकि पूर्वानुमानित समाजीकरण की अवधारणा मर्टन की ही है|
सापेक्षिक वंचना की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति अपने समूह की तुलना अन्य समूह से करता है एवं अपने समूह को तुलनात्मक रुप से निम्न स्थिति में पाता है | यह स्थिति उसमें हीनता या हताशा उत्पन्न करता है | इसे सापेक्षिक वंचना कहते हैं | जब व्यक्ति इस हताशा या हीनता से मुक्त होना चाहता है एवं मुक्त होने के लिए अन्य समूह की शर्तों को पूरा करने का जो प्रयास करता है उसे अग्रिम समाजीकरण कहते हैं |
सापेक्षिक वंचना से व्यक्ति को मुक्ति तभी मिलती है जब वह गैर-सदस्यी संदर्भ समूह की सदस्यता प्राप्त करने में सफल हो जाता है |
संदर्भ समूह के माध्यम से व्यक्ति अपने कथनों को स्पष्ट करता है एवं क्रियाओं को आैचित्यता प्रदान करने का कार्य करता है | इस तरह संदर्भ समूह व्यक्ति का सदस्यता समूह तथा गैर-सदस्यता समूह दोनों में से कोई एक या दोनों हो सकता है | लेकिन मर्टन ने संदर्भ समूह सिद्धांत का विश्लेषण प्राथमिक रुप से गैर-सदस्य समूह के संदर्भ में ही किया क्योंकि इसके द्वारा सामाजिक संरचना में परिवर्तन होता है एवं सामाजिक गतिशीलता की संभावनाओं में वृद्धि होती है |
विभिन्न विद्वानों द्वारा समूह का वर्गीकरण निम्नवत् किया गया है –
मिलर - (1) उदग्र (Vertical) (2) क्षैतिज (Horizontal)
मर्टन - (1) सदस्यता समूह (Membership group) (2) गैर-सदस्यता समूह (Non- membership group)
बीरस्टीड - (1) संदर्भ समूह (Reference group) (2) गैर-संदर्भ समूह (Non-reference group)
न्यूकॉम्ब - (1) सकारात्मक सन्दर्भ समूह (Positive reference group) (2) नकारात्मक संदर्भ समूह (Negative reference group)
पार्क एवं बर्जेस - (1) क्षेत्रीय समूह (Territorial group) (2) गैर-क्षेत्रीय समूह (Non territorial group)
सोरोकिन - (1) एकल बंधन (Uni-bonded) (2) बहु-बंधन (Multi-bonded)
गिडिंग्स - (1) जननिक (Genetic) (2) एकत्रित (Congregate) (3) वियोजक (Distinctive) (4) अतिव्यापी (Overlapping)
वार्ड - (1) ऐच्छिक (Voluntary) (2) अनिवार्य (Involuntary)
बोगार्डस - (1) औपचारिक (Formal) (2) अनौपचारिक (Informal)