क्षेत्रवाद क्या है –
जब एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लोग भाषा, संस्कृति आदि के आधार पर अपनी अलग पहचान बनाए रखना चाहते हों तो इसे क्षेत्रवाद कहते हैं | क्षेत्रवाद की भावना जब अधिक तीव्र हो जाती है तो यह दूसरे क्षेत्रों से द्वेष एवं घृणा के रूप में सामने आती है| बंगाल, बंगालियों के लिए जैसे नारे तथा महाराष्ट्र में उतर भारतीयों के विरुद्ध हिंसा क्षेत्रवाद के उदाहरण हैं| ये क्षेत्रवादी भावनाएँ समय-समय पर भारत की विविधता में एकता की संस्कृति को चुनौती देती रहती हैं|
क्षेत्रवाद का एक सकारात्मक पहलू यह हो सकता है कि यह क्षेत्र विशेष की संस्कृति को बनाए रखता है तथा राष्ट्रीयता का एक महत्वपूर्ण अंग होता है|लेकिन यह सकारात्मक तभी है, जब अपने क्षेत्र की अस्मिता के साथ अन्य
क्षेत्रों को भी समान महत्त्व दे| किन्तु क्षेत्रवाद के ज्यादातर नकारात्मक पहलू ही देखने को मिलते हैं|
क्षेत्रवाद के कारण (Causes of Regionalism) –
(1) सांस्कृतिक भिन्नता –
जब एक क्षेत्र की सांस्कृतिक विशेषताएं जैसे – रहन-सहन,वेष -भूषा अन्य क्षेत्रों से भिन्न होती है तो वे स्वयं को दूसरे पृथक बनाए रखना चाहते हैं जैसे – भारत के उत्तर पूर्वी राज्य|
(2) प्रवसन –
विकास की प्रक्रिया में जब रोजगार की तलाश में जब एक क्षेत्र के लोग दूसरे क्षेत्रों में जाते हैं तो स्थानीय निवासियों को अपनी सांस्कृतिक पहचान के लिए संघर्ष करना पड़ता है, जिससे क्षेत्रवाद की भावना प्रबल होती है
(3) राजनीतिक कारण –
स्थानीय नेता वोट बैंक की राजनीति के लिए स्थानीय लोगों को गुमराह करते हैं एवं उग्र प्रदर्शन के लिए उकसाते हैं| ऐसे नेता राज्य की स्वायत्तता के लिए भी आंदोलन करते हैं|
(4) मनोवैज्ञानिक कारण –
देश के प्रत्येक क्षेत्र की अपनी विशेष संस्कृति एवं संसाधन हैं जो दूसरों से भिन्न होते हैं| साधन संपन्न क्षेत्रों में जब दूसरे क्षेत्र के लोग आते हैं तो संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ तो पड़ता ही है साथ ही स्वाभाविक रूप से दूसरे लोगों के प्रति द्वेष भी उत्पन्न होने लगता है ऐसे में सांस्कृतिक अस्मिता की भावना क्षेत्रवाद को और अधिक बढ़ा देती है|
(5) अवैध प्रवसन –
उत्तर पूर्व में जब राज्यों का पुनर्गठन हुआ तो नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, असम में अन्य राज्यों से प्रवसन हुआ जिससे वहाँ अपनी संस्कृति के प्रति लोग सचेत हुए एवं अन्य क्षेत्रों से स्वयं को पृथक करने लगे, बांग्लादेश से अवैध प्रवचन ने क्षेत्रवाद की भावना को और गंभीर बना दिया|
क्षेत्रवाद के दुष्परिणाम (Evil effects of Regionalism) –
(1) क्षेत्रवाद देश की एकता और अखण्डता के लिए बाधक होता है|
(2) क्षेत्रवाद धीरे-धीरे अलगाववाद का रूप धारण कर लेता है
(3) क्षेत्रवाद के कारण विभिन्न क्षेत्रों के बीच तनाव एवं संघर्ष दिखाई देता है|
(4) क्षेत्रवाद के कारण स्वार्थी एवं असामाजिक तत्त्वों को अवसर मिल जाता है|
(5) क्षेत्रवाद समय अंतराल में भाषावाद का भी रूप लेते हुए दिखायी देता है|
(6) क्षेत्रवाद के संघर्ष से लोगों का रोजगार छिन जाता है एवं आर्थिक नुकसान होता है|
(7) क्षेत्रवाद देश के विकास एवं प्रगति में बाधक है|
क्षेत्रवाद की समस्या का समाधान –
(1) प्रत्येक व्यक्ति में क्षेत्रीय हित के बजाय राष्ट्रीय हित की प्राथमिकता का विकास करना चाहिए|
(2) प्रत्येक क्षेत्र में संसाधनों के दोहन में स्थानीय लोगों की भी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए|
(3) देश के प्रत्येक क्षेत्र में विशेष संसाधन उपलब्ध है, अतः सरकार को उनके दोहन पर भी ध्यान देना चाहिए, जिससे रोजगार के लिए अधिक प्रवसन न हो सके|
(4) क्षेत्रवाद के नाम पर भड़काने वाले नेताओं पर कठोर कार्यवाही होनी चाहिए|
(5) ऐसे संगठन जो राष्ट्रहित को नजरअंदाज कर क्षेत्रवाद को बढ़ावा देते हैं, उन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए|
(6) सरकार द्वारा कौशल विकास (Skill Development) के लिए विशेष प्रयास करना चाहिए| जिससे युवाओं को अपने क्षेत्र में ही रोजगार मिल सके|
(7) सरकार को स्व:रोजगार के लिए विशेष छूट एवं प्रोत्साहन देना चाहिए|
(8) वैश्वीकरण के इस दौर में वस्तु एवं सेवा का निर्वाध आवागमन हर क्षेत्र में हुआ है, इसे भी स्थानीय लोगों को सोचना चाहिए|