बुजुर्गों/वृद्धों की समस्याएँ –
वृद्धावस्था का तात्पर्य जीवन के उस अवस्था से है जिसमें शारीरिक ढांचे एवं कार्य-प्रणाली में परिवर्तन आ जाता है| व्यक्ति की शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों में ह्रास हो जाता है| बुजुर्गों की समस्याओं को निम्न बिंदुओं में देखा जा सकता है –
(1) शारीरिक समस्या –
वृद्धों की शारीरिक क्षमता कम हो जाती है साथ ही अनेक बीमारियाँ भी उन्हें ग्रसित कर लेती हैं, जैसे – मोटापा, गठिया, ब्लड प्रेसर, मधुमेह, दमा आदि| बुजुर्गों के दुर्घटनाग्रस्त होने की सम्भावना भी अधिक रहती है| जो लोग धूम्रपान करते हैं, उनमें श्वसन, कैंसर, पेट के अल्सर जैसी बिमारियों के होने की संभावना अधिक रहती है|
(2) मानसिक तनाव –
नौकरी न होने के कारण बुजुर्गों की दूसरों पर निर्भरता होती है| उन्हें अपने ही परिवार में बोझ समझा जाने लगता है| जो बुजुर्ग जीविकोपार्जन के लिए श्रम करते हैं उनकी स्थिति और भी दयनीय है| संयुक्त परिवार का विघटन तथा परिवार के लोगों द्वारा तिरस्कार के कारण असुरक्षा, उदासीनता, असंतोष एवं मानसिक तनाव उत्पन्न होता है|
(3) आर्थिक समस्याएँ –
बुजुर्गों की आमदनी का सामान्यतः कोई नियमित साधन नहीं होता, जबकि इस अवस्था में बीमारियाँ एवं शारीरिक असक्तता के कारण धन की अधिक आवश्यकता होती है, ऐसे में बुजुर्ग दूसरों पर पूरी तरह निर्भर एवं दूसरों के दया के पात्र बन कर रह जाते हैं|
(4) सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याएँ –
बुजुर्गों को प्राय: घर में भी एक अलग स्थान दिया जाता है| भारत जैसे देश में संसाधनों की कमी के कारण बुजुर्गों को भार के रूप में देखा जाता है| पारस्परिक मेल-जोल भी कम रहता है| परिवार के लोग निश्चित समय के लिए ही उनसे संपर्क करते हैं|
बुजुर्गों की समस्या के उपाय –
(1) वृद्धों को समाज में सम्मान दिया जाना चाहिए|
(2) सरकार द्वारा वृद्धों के लिए एक निश्चित मात्रा में पेंशन दिया जाना चाहिए|
(3) बुजुर्गों के लिए अस्पतालों में पूर्णतय: नि:शुल्क चिकित्सा की व्यवस्था की जानी चाहिए|
(4) बुजुर्गों के लिए प्रत्येक ग्रामसभा एवं शहरों के यथासम्भव मोहल्ले में छोटा सा पार्क होना चाहिए|
(5) बुजुर्गों के लिए वृद्धावस्था आश्रम की व्यवस्था होनी चाहिए|
(6) वृद्धा-आश्रम एवं अनाथालय को आपस में सम्मिलित कर देना चाहिए, जिससे एक तरफ बच्चों को बुजुर्गों का मार्गदर्शक एवं संस्कार मिलेगा तो दूसरी तरफ वृद्धों का मन बच्चों के साथ बहल जाय|