जाति असमानता या विषमता (Caste Inequality)

[wbcr_php_snippet id=”362″ title=”before_post_ad_unit”] असमानता (Inequality) व्यक्ति जब अपने लाभ हानि के आधार पर समूहों का मूल्यांकन करता है तो वह स्वाभाविक रूप से उच्चता एवं निम्नता में बँट जाता है| इसी उच्चता एवं निम्नता को असमानता कहते हैं, उदाहरण के लिए – लैंगिक असमानता, भारत में जाति असमानता| असमानता प्राकृतिक अवधारणा न होकर एक सामाजिक … Read more

निर्धनता (Poverty)| Nirdhanta ki paribhasha| सापेक्ष एवं निरपेक्ष निर्धनता

Nirdhanta ki paribhasha निर्धनता या गरीबी वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी तथा अपने पर आश्रित सदस्यों की आवश्यकता की पूर्ति धन के अभाव के कारण नहीं कर पाता है| जिसके कारण उसके परिवार को जीवन की न्यूनतम आवश्यकता जैसे रोटी, कपड़ा, मकान भी उपलब्ध नहीं हो पाता| दूसरे शब्दों में कहें तो समाज का … Read more

ब्लूमर का प्रतीकात्मक अन्तःक्रियावाद
(Blumer’s Symbolic Interactionism)

[wbcr_php_snippet id=”362″ title=”before_post_ad_unit”] हरबर्ट ब्लूमर, मीड के विचारों को आगे बढ़ाते हैं तथा अंतःक्रिया के व्यावहारिक स्वरूप की चर्चा करते हैं| ब्लूमर के अनुसार वस्तुओं एवं प्रतीकों में निहित अर्थ ही हमारी भूमिकाओं का निर्माण करते हैं| ब्लूमर का प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद तीन दृष्टिकोण (Perspective) पर आधारित है – (1) मनुष्य अर्थ के आधार पर वस्तुओं … Read more

प्रतीकात्मक अंत:क्रियावाद
(Symbolic Interactionism)

[wbcr_php_snippet id=”362″ title=”before_post_ad_unit”] प्रतीकात्मक अंत:क्रियावाद समाज को स्थाई स्वरूप के रूप में देखने के प्रतिक्रिया स्वरूप अस्तित्व में आया| प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के अनुसार समाज गतिशील है, समाज को निर्मित करने वाली सामाजिक क्रियाएं एवं भूमिकाएँ बदलती रहती है| इसलिए समाज का अध्ययन संरचनावादी दृष्टिकोण से न करके प्रक्रियावादी दृष्टिकोण से करना यथार्थ के ज्यादा नजदीक … Read more

दुर्खीम का समाजीकरण का सिद्धांत
(Durkheim’s theory of Socialization)

[wbcr_php_snippet id=”362″ title=”before_post_ad_unit”] दुर्खीम ने कभी प्रत्यक्ष रूप से स्वः के विकास के लिए समाजीकरण की चर्चा नहीं की लेकिन अपनी पुस्तक सोशियोलॉजी एंड फिलोसोफी (Sociology and Philosophy) में व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के लिए समाज की भूमिका को रेखांकित किया| मार्क्स की तरह दुर्खीम भी व्यक्ति को कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं मानते बल्कि समूह … Read more

फ्रायड का समाजीकरण का सिद्धांत
(Freud’s Theory of Socialization)

[wbcr_php_snippet id=”362″ title=”before_post_ad_unit”] फ्रायड के सिद्धांत को समाजीकरण का मनोविश्लेषक (Psycho-analytical) सिद्धांत भी कहा जाता है| फ्रायड के समाजीकरण सिद्धांत की मूल विशेषता यह है कि जहाँ कूले एवं मीड समाज एवं स्व: के बीच सह संबंध देखते हैं, वहीं फ्रायड समाज एवं स्व: के बीच मौलिक विरोध के परिणाम स्वरूप समाजीकरण की प्रक्रिया को … Read more

मीड का समाजीकरण का सिद्धांत (Mead’s theory of Socialization)

[wbcr_php_snippet id=”362″ title=”before_post_ad_unit”] अमेरिकी समाजशास्त्री एवं मनोवैज्ञानिक जी.एच. मीड (G.H. Mead) ने अपनी पुस्तक माइंड सेल्फ एंड सोसाइटी (Mind Self And Society) में समाजीकरण का सिद्धांत (समाजीकरण क्या है)  प्रस्तुत किया| मीड ने आत्म के विकास के लिए ‘मैं’ तथा ‘मुझे’ (I and Me), महत्त्वपूर्ण अन्य तथा सामान्यीकृत अन्य जैसी अवधारणाओं का प्रतिपादन किया| ‘मैं’ … Read more

समाजीकरण के सिद्धांत (Theories of Socialization)

विभिन्न विद्वानों ने समाजीकरण के सिद्धांत का प्रतिपादन कर यह दर्शाने का प्रयास किया कि व्यक्ति अपने समाज के मूल्यों एवं प्रतिमानों को कैसे आत्मसात् करता है| मनोवैज्ञानिकों एवं समाजशास्त्रियों ने व्यक्ति के समाजीकरण में आत्म (Self) के विकास को केंद्रीय तत्त्व माना| आत्म कोई शारीरिक तथ्य न होकर मानसिक तथ्य है, जिसका तात्पर्य व्यक्ति … Read more

समाजीकरण से सम्बन्धित विभिन्न अवधारणाएँ

[wbcr_php_snippet id=”362″ title=”before_post_ad_unit”] समाजीकरण अपने समाज के मूल्यों एवं प्रतिमानों को सीखने की प्रक्रिया है| यह प्रक्रिया भिन्न-भिन्न समाजों में भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है| परम्परागत समाजों में समाजीकरण की प्रक्रिया अतीत की ओर अधिक झुकी होती है, जबकि आधुनिक समाज में यह भविष्य की ओर उन्मुख होती है| इसलिए परम्परागत समाज में व्यक्तियों में … Read more

समाजीकरण के अभिकरण (Agencies of Socialization)

समाजीकरण की प्रक्रिया जीवन पर्यंत चलती रहती है| जिसके लिए अनेक संस्थाएँ, नियम एवं समूह समाज में स्थापित है, जिसे साधन एवं अभिकरण कहते हैं| अभिकरण का तात्पर्य व्यक्तियों के संकलन से है जो साधनों का प्रयोग कर समाजीकरण के लक्ष्य को साकार करते हैं|व्यक्ति विभिन्न संस्थाओं एवं समूहों से जितना अनुकूलन कर लेता है … Read more

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