अॉगबर्न का सांस्कृतिक विलम्बना का सिद्धांत
(Cultural lag theory of Ogburn)

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अॉगबर्न ने अपनी पुस्तक सोशल चेंज (Social change) में सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक विलम्बना (Cultural Lag) का सिद्धांत प्रस्तुत किया| उन्होंने संस्कृति को दो भागों में विभाजित किया – (1) भौतिक संस्कृति (2) अभौतिक संस्कृति

उनके अनुसार विकास की प्रक्रिया में जब भौतिक संस्कृति आगे बढ़ जाती है एवं अभौतिक संस्कृति पीछे रह जाती है तो इस असंतुलन को वे सांस्कृतिक विलम्बना (Cultural Lag) कहते हैं|

भौतिक संस्कृति का तात्पर्य ऐसी वस्तुएं जो हमें दिखाई देती हैं – जैसे पुस्तक, घर, रेल, मोबाइल, हवाई जहाज आदि| अभौतिक संस्कृति हमें दिखाई नहीं देती, यह अमूर्त होती है, जैसे – धर्म, दर्शन, विश्वास, कला, प्रथा, परम्परा आदि| इन दोनो संस्कृतियों में घनिष्ठ संबंध पाया जाता है| संस्कृति का प्रत्येक आयाम एक साथ एवं एक समय में परिवर्तित नहीं होता| इसलिए किसी एक भाग में परिवर्तन दूसरे भाग में तनाव एवं असंतुलन पैदा कर देता है| ऐसी स्थिति में दोनों संस्कृतियों के बीच संतुलन स्थापित करना होता है| लेकिन संतुलन स्थापित होने में कुछ समय लग जाता है, इसी समयान्तराल को सांस्कृतिक विलम्बना कहा जाता है|

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सांस्कृतिक विलम्बना को स्पष्ट करने के लिए ऑगबर्न ने कई उदाहरण दिए –

(1) प्रौद्योगिक प्रगति ने भौतिक संस्कृति में बहुत तेजी से परिवर्तन लाया, लेकिन अभौतिक संस्कृति इसके साथ संतुलन बनाने में असफल रही या लंबे समय बाद ही संतुलन बन पायी| परिणाम स्वरूप बहुत सी समस्याएं उत्पन्न हो गई, जैसे ऑटोमोबाइल के आने से सड़कों पर गाड़ियों की संख्या बढ़ी, लेकिन जब रोड दुर्घटना होने लगी तब ट्राफिक नियम बाद में बनाया गया|

(2) अौद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण नए व्यवसाय तो उत्पन्न हुए, लेकिन श्रम कल्याण के नियम एवं संबंधित संस्थाओं का निर्माण बाद में हुआ|

(3) कृषि के लिए नवीन यंत्रों का विकास तो हुआ लेकिन भूमि-सुधार के कानून देर से बने|
इस तरह भौतिक एवम् अभौतिक संस्कृति में असंतुलन पैदा हो गया एवं इसमें अनुकूलन लंबे समय बाद हुआ| यही सांस्कृतिक विलम्बना है|

आलोचना –

(1) सोरोकिन के अनुसार यह जरूरी नहीं कि भौतिक संस्कृति ही अभौतिक संस्कृति में परिवर्तन लाए| कभी-कभी इसका उल्टा भी होता है, जैसे – भौतिक संस्कृति में परिवर्तन अविष्कार के कारण होता है और अविष्कार मनुष्य के विचार एवं ज्ञान पर निर्भर करता है, जो अभौतिक है|

(2) आलोचकों के अनुसार जब भौतिक एवम अभौतिक संस्कृति भिन्न है तो उसमें परिवर्तन की गति भी भिन्न होगी| अतः दोनों की तुलना तार्किक नहीं है|

(3) सदरलैंड एवं वुडवर्ड के अनुसार दोनों संस्कृतियाँ एक दूसरे की पूरक हैं| यह कहना कि भौतिक संस्कृति में ही पहले परिवर्तन होता है एवं अभौतिक में बाद, में त्रुटि पूर्ण है| यह तो वही प्रश्न है कि मुर्गी पहले या अंडा|

(4) आलोचकों के अनुसार विलम्बना भौतिक एवम् अभौतिक में ही नहीं बल्कि एक ही प्रकार की संस्कृति, जैसे – भौतिक के विभिन्न पक्षों में भी होता है|

वस्तुतः अागबर्न का सिद्धांत पूरी तरह दोष मुक्त नहीं है| फिर भी उन्होंने भौतिक एवम् अभौतिक संस्कृति के बीच के समयान्तराल के दौरान समस्याओं की तरफ ध्यान आकृष्ट किया है| आज भी यथार्थ यही है कि हम भौतिकता को तो जल्दी अपना लेते हैं, लेकिन अभौतिक तत्त्वों जैसे – परम्परा, विचार, धर्म आदि में जल्दी परिवर्तन नहीं कर पाते|

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