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प्रत्येक समाज में नियंत्रण स्थापित करने के लिए अनेक अभिकरणों एवं साधनों का प्रयोग होता है| अभिकरण से तात्पर्य ऐसी सत्ता, समूह, समिति या संगठन से है जो नियमों का निर्माण करता है एवं इसके द्वारा व्यक्ति तथा समूह पर नियंत्रण स्थापित करता है| जिन नियमों के द्वारा कोई समूह या संगठन लोगों पर नियंत्रण स्थापित करता है| उसे ही साधन कहते हैं, जैसे – परिवार एक अभिकरण है और यह जनरीतियों, प्रथाओं, लोकाचारों आदि साधनों के माध्यम से सदस्यों पर नियंत्रण रखता है|उल्लेखनीय है कि सामाजिक नियंत्रण के अभिकरण और साधन का अंतर सीमित है|
एक विशेष परिस्थिति में सामाजिक नियंत्रण का अभिकरण साधन बन सकता है तथा साधन कभी विशेष स्थित में अभिकरण बन सकता है, जैसे – राज्य एक अभिकरण है एवं वह अपने साधन पुलिस के माध्यम से समाज पर नियंत्रण स्थापित करता है| लेकिन जब अपराधियों पर कार्यवाही की बात होती है तब पुलिस सीआर.पी.सी.(Cr.P.C.) और आई.पी.सी.(I.P.C.) कानून के तहत मुकदमा दर्ज करती है| ऐसे में पुलिस अभिकरण एवं सीआर.पी.सी.(Cr.P.C.) और आई.पी.सी.(I.P.C.) साधन बन जाते हैं|
सामाजिक नियंत्रण के अभिकरण के अंतर्गत परिवार, शैक्षणिक संस्थाएं, धार्मिक समिति, पुलिस, नेतागण आदि शामिल है, जबकि साधनो में जनरीति, प्रथा, लोकाचार, कानून, नैतिकता, हास्य, व्यंग, जनमत, पुरस्कार, दण्ड आदि शामिल हैं|
सामाजिक नियंत्रण के अभिकरण (Agencies of Social Control)
परिवार (Family)
सामाजिक नियंत्रण के प्राथमिक एवं अनौपचारिक अभिकरण में परिवार का नाम सर्वोपरि है| परिवार व्यक्ति के समाजीकरण में प्रत्यक्ष भूमिका अदा करता है| समाजीकरण के द्वारा परिवार व्यक्ति को सामाजिक मूल्यों, प्रतिमानों, विश्वासों, परम्पराओं, नियमों आदि से परिचित कराता है एवं व्यक्ति उसी के अनुरूप आचरण करता है| ऐसा करने से एक बच्चा या व्यक्ति को स्नेह, प्रशंसा आदि द्वारा परिवार प्रोत्साहित करता है तथा नियमों से अलग आचरण पर परिवार द्वारा डांट, निंदा, उपेक्षा, अपमान आदि के माध्यम से नियंत्रण स्थापित करता है| इस तरह बच्चा या व्यक्ति आत्म नियंत्रित हो जाता है, एवं सामाजिक नियंत्रण बना रहता है|
अॉगबर्न और निमकॉफ (Ogburn and Nimkoff) के अनुसार स्नेह की लालसा और बच्चों का पालन-पोषण नि:संदेह परिवार के निर्माण में मौलिक कारक रहे हैं, जो आज भी सर्वव्यापी है|
बिसेन्ज एवं बिसेन्ज (Biesanz and Biesanz) के अनुसार परिवार एक मौलिक एवं सर्वव्यापी संस्था है तथा प्रत्येक समाज का जीवित रहना इसी पर आधारित है|
राज्य (State)
सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक अभिकरण में राज्य का स्थान सर्वोपरि है| राज्य कानून, पुलिस, जेल, न्यायालय, सेना, गुप्तचर आदि के माध्यम से व्यक्ति एवं समूह पर नियंत्रण रखता है| इसके अतिरिक्त राज्य अपने नागरिकों को अधिकार एवं सुरक्षा प्रदान करता है तथा उनके कल्याण के लिए नीतियों का निर्माण करता है साथ ही बाह्य आक्रमण से देश की रक्षा करता है|
मैकाइवर (MacIver) के अनुसार राज्य एक ऐसी समिति है जो कानून एवं शासनाधिकार के द्वारा कार्य करती है और जिसे एक निश्चित भू-भाग के अंदर सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के सर्वोच्च अधिकार प्राप्त होते हैं|
गार्नर के अनुसार राज्य व्यक्तियों का वह समूह है जो सामान्यतः एक निश्चित भ-ूभाग पर रहता है, वाह्य नियंत्रण से लगभग पूरी तरह स्वतंत्र होता है, जिसका अपना एक शासनतंत्र होता है तथा स्वभाव से ही व्यक्तियों में इस शासनतंत्र के प्रति आज्ञा पालन की भावना होती है|
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वेबर के अनुसार राज्य एक मानवीय समुदाय है, जिसका एक निश्चित भू-भाग में भौतिक बल के वैधानिक प्रयोग पर एकाधिकार होता है और साथ ही यह इस अधिकार को सफलतापूर्वक लागू करता है|
राज्य की निम्न चार विशेषताएं होती है –
(1) निश्चित भ-ूभाग (Definite Territory)
(2) जनसंख्या (Population)
(3) संप्रभुता (Sovereignty)
(4) सरकार (Government)
सामाजिक नियंत्रण में राज्य की भूमिका को निम्न बिंदुओं में देखा जा सकता है
(1) मूलाधिकारों की रक्षा|
(2) समस्याओं का लोकतांत्रिक समाधान|
(3) दंड के द्वारा नियंत्रण|
(4) पुरस्कार द्वारा नियंत्रण स्थापित करना|
(5) कानूनों, नीतियों का निर्माण एवं क्रियान्वयन|
(6) आंतरिक एवं वाह्य सुरक्षा द्वारा नियंत्रण|
(7) कल्याणकारी कार्यों के लिए नीति निर्माण|
(8) आर्थिक व्यवस्था का नियमन|
(9) समाज विरोधी ताकतों का दमन|
फेयर चाइल्ड के अनुसार राज्य समाज की वह एजेंसी है जो शक्ति का उपयोग करने अथवा दमनकारी नियंत्रण को लागू करने का अधिकार रखती है| इस शक्ति का प्रयोग सदस्यों पर नियंत्रण रखने अथवा अन्य समाजों से अपने को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है|
धर्म (Religion)
धर्म अलौकिक शक्ति में विश्वास है| यह विश्वास ही सामाजिक नियंत्रण स्थापित करता है| ईश्वर, स्वर्ग, नर्क, पाप, पुण्य के भय से व्यक्ति समाज विरोधी एवं अनैतिक कार्य से बचता है| सामाजिक नियमों के उल्लंघन का तात्पर्य पाप करना एवं ईश्वर के कोप का पात्र बनना| इसलिए मनुष्य सामाजिक नियमों को स्वतः स्वीकार करता है| बाढ़, भूकंप एवं अन्य प्राकृतिक आपदा से व्यक्ति भयभीत रहता है| इसलिए धर्म से संबंधित विश्वास व्यवस्था का पालन करता है|
फ्रेजर अपनी पुस्तक गोल्डन बो (Golden Bough) में लिखते हैं कि धर्म से मेरा तात्पर्य मनुष्य से श्रेष्ठ उन शक्तियों की संतुष्टि अथवा आराधना है जिनके बारे में व्यक्तियों का यह विश्वास हो कि वे प्रकृति और मानव जीवन को नियंत्रित करती हैं तथा उन्हें मार्ग दिखाती हैं|
दुर्खीम के अनुसार धर्म पवित्र वस्तुओं से संबंधित अनेक विश्वासों तथा आचरणों की वह व्यवस्था है जो अपने से संबंधित लोगों को एक नैतिक समुदाय में बाँधती है|
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शैक्षणिक संस्थाएँ (Educational Institution)
शैक्षणिक संस्था सामाजिक नियंत्रण का अभिकरण है एवं शिक्षा साधन है| जहां व्यक्ति का अनौपचारिक समाजीकरण परिवार में होता है वही औपचारिक समाजीकरण शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा किया जाता है| शिक्षा व्यक्ति में आत्म नियंत्रण की शक्ति पैदा करता है| यह व्यक्ति में ज्ञान एवं तार्किक क्षमता में वृद्धि करता है, जिससे व्यक्ति उचित-अनुचित, सही-गलत का निर्णय ले सके तथा उस पर अपनी राय एवं प्रतिक्रिया व्यक्त कर सके| वास्तविक शिक्षा के मायने भी यही है कि व्यक्ति सही एवं गलत में अंतर कर सके तथा सही का साथ एवं गलत का विरोध दर्ज कर सके| इस तरह शिक्षा व्यक्ति को आत्म- नियंत्रण का सामर्थ्य प्रदान करता है एवं समाज के नियंत्रण करने के लिए व्यक्ति को सामर्थ्य एवं प्रेरणा प्रदान करता है|
महात्मा गांधी के अनुसार शिक्षा से मेरा अभिप्राय बच्चे के शरीर, मन और आत्मा में विद्यमान सर्वोत्तम गुणों का सर्वांगीण विकास करना है|
बोगार्डस के अनुसार संस्कृतिक विरासत एवं जीवन के अर्थ को प्रदान करना ही शिक्षा है|
सामाजिक नियंत्रण में शिक्षा की भूमिका (Role of education in Social Control)
(1) शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के समाजीकरण द्वारा|
(2) संस्कृति का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्थानांतरण द्वारा|
(3) व्यक्ति के अधिकार एवं कर्तव्य के निर्धारण द्वारा|
(4) लोगों में नैतिक गुणों के विकास द्वारा|
(5) लोगों में अनुकूलन की क्षमता के विकास द्वारा|
(6) लोगों के बौद्धिक विकास द्वारा|
(7) सामाजिक परिवर्तन को ग्रहण करने की क्षमता के विकास द्वारा|
(8) व्यक्ति के सर्वांगीण विकास द्वारा|
दुर्खीम के अनुसार शिक्षा बच्चों को भाषण, धर्म, नैतिकता तथा सामाजिक प्रथाओं के माध्यम से सामान्य सामाजिक परम्पराओं का प्रसारण कर सम्पूर्ण समाज में जीवन व्यतीत करने योग्य बनाती है|
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