परिवार की परिभाषा (Definition of Family)
परिवार एक छोटा सामाजिक समूह है, जिसके अंतर्गत पति-पत्नी एवं उनके बच्चे शामिल होते हैं | प्रत्येक मानव समाज में नवजात शिशु के लालन-पालन की आवश्यकता होती है यह लालन पालन माता-पिता द्वारा हो या अन्य द्वारा , इससे जुड़े कुछ नियम पाए जाते हैं जो परिवार को एक संस्था का स्वरूप प्रदान करते हैं | संस्था के रूप में परिवार सार्वभौमिक (सभी समाज में पाया जाता है) है |
मैकाइवर एवं पेज (Maciver and Page) के अनुसार परिवार यौन संबंधों पर आधारित एक छोटा समूह है, जो बच्चों के जन्म एवं लालन-पालन की व्यवस्था करता है|
जी.पी.मर्डाक (G. P. Murdock) ने विश्व के 250 समाजों का अध्ययन कर निष्कर्ष दिया कि परिवार सार्वभौमिक है (Family is universal)
जिन समूहों या समाज में बच्चों का लालन-पालन माता-पिता द्वारा नहीं बल्कि अन्य किसी के द्वारा होता है उसे घरेलू समूह (Domestic group) कहते हैं ,जैसे – इजरायल का किबुत्स समुदाय | घरेलू समूह की निम्न विशेषताएं होती है –
(1) भोजन संग्रह , निर्माण एवं उपभोग (Food acquisition, preparation and consumption)
(2) संतानोत्पत्ति एवं बच्चों का समाजीकरण (Procreation and socialization of children)
लूसी मेयर के अनुसार परिवार एक गृहस्थ समूह है, जिसमें माता-पिता एवं संतान साथ-साथ रहतें हैं, इनके मूल में दंपत्ति एवं उनकी संतान रहती है |
कॉम्टे (Comte) के अनुसार व्यक्ति नहीं वरन् परिवार ही समाज के अध्ययन की इकाई है |
ब्रिफॉल्ट (Briffault) ने अपनी पुस्तक दी मदर (The Mother) में दावा किया कि वैवाहिक संबंध के प्रारंभिक चरण में सबसे बड़ी सत्ता माता की थी|
मॉर्गन का परिवार के उद्विकास का सिद्धांत –
मार्गन (Morgan) ने उद्विकासीय आधार पर पाँच प्रकार के परिवार की चर्चा की, जिसे वे विवाह के आधार पर व्याख्यायित करते हैं | उनके अनुसार विवाह का आरंभिक स्वरूप यौन साम्यवाद (Sexual communism) का था| इसका तात्पर्य उस समय रक्तसंबंधियों में भी विवाह की मनाही नहीं थी| जिसे मॉर्गन समरक्त परिवार से संबोधित करते हैं|
उनके अनुसार एक विवाह , परिवार के उद्भव की अंतिम अवस्था है | मार्गन द्वारा व्याख्यायित परिवार के पाँच प्रकार निम्न हैं –
(1) समरक्त परिवार (Consanguine family)
(2) समूह परिवार (Punaluan family)
(3) युग्म परिवार (Syndasmian family)
(4) पितृ-सतात्मक परिवार (Patriarchal family)
(5) एक विवाही परिवार (Monogamous family)
मॉर्गन के उपयुक्त विश्लेषण को समाजशास्त्रियों ने मिथक से संबोधित किया | मॉर्गन के भ्रामक विश्लेषण का मुख्य कारण नातेदारी शब्दावलियों की गलत समझ थी | उन्होंने अमेरिका के इराक्यूवस (Iroquois) जनजाति का अध्ययन किया था, जिसमें महिलाओं के लिए माँ शब्द एवं पुरुषों के लिए पिता शब्द का प्रयोग होता है | इन्हीं शब्दों के आधार पर मार्गन ने यौन साम्यवाद की बात की है | उन्होंने नातेदारी को दो भागों में विभाजित किया है – वर्गात्मक (Classificatory) एवं विवरणात्मक (Descriptive)|
वेस्टरमार्क (Westermarck) ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ ह्यूमन मैरिज (History of Human Marriage) में मार्गन के यौन स्वच्छन्दतावाद एवं प्राचीन युग्म विवाह के सिद्धांत की कटु आलोचना की| उनके अनुसार विवाह का इतिहास प्रारम्भ से ही एक विवाही रहा है | मानवाकार कपि (Anthropoid Ape) में भी नाभिकीय परिवार पाया जाता था, जिससे समाज विकसित हुआ| वेस्टरमार्क आगे लिखते हैं कि विवाह की जड़ें परिवार में है न कि परिवार की विवाह में| (Marriage is rooted in family rather than family in marriage)
परिवार की विशेषताएँ (Characteristics of family) –
(1) सार्वभौमिकता
(2) सामान्य निवास
(3) भावनात्मक आधार
(4) बच्चों का लालन पालन
(5) समाजीकरण
(6) सदस्यों का उत्तरदायित्व
(7) सामाजिक नियंत्रण
(8) सामाजिक ढ़ाँचे में केंद्रीय स्थिति
परिवार के प्रकार (Types of family) –
संख्या के आधार पर – (1) संयुक्त परिवार (2) नाभिकीय परिवार
निवास के आधार पर – (1) पितृ स्थानीय (2) मातृ-स्थानीय (3) नव- स्थानीय
अधिकार के आधार पर – (1) पितृ सतात्मक (2) मातृ- सतात्मक
वंशनाम के आधार पर – (1) पितृ-वंशीय (2) मातृ-वंशीय
विवाह के आधार पर – (1) एक विवाही (2) बहु- विवाही
संयुक्त परिवार (Joint Family) – इस परिवार में अनेक पीढ़ियों के रक्त संबंधी एक साथ रहते हैं एवं एक ही रसोईयाँ होता है | पितृ पूजा एवं संयुक्त संपत्ति इसकी विशेषता है | परिवार का एक मुखिया होता है जिसके द्वारा सदस्यों में सामंजस्य बना रहता है| भारत में मुख्य रुप से यही परिवार पाया जाता है|
डंकन मिचेल के अनुसार - संयुक्त संपत्ति के साथ जब कर्ता की उपस्थिति तथा पितृ पूजा की विशेषता जुड़ जाती है तो वह परिवार संयुक्त परिवार में बदल जाता है |
नाभिकीय परिवार (Nuclear Family) – यह परिवार पति-पत्नी एवं अविवाहित बच्चों से मिलकर बना होता है | जैसे ही बच्चों की शादी हो जाती है यह संयुक्त परिवार में बदल जाता है | पश्चिम के देशों – जैसे यूरोप के सभी देश , अमेरिका आदि में मुख्य रूप से यही परिवार पाया जाता है | भारत में भी जीविकोपार्जन के लिए शहरों में बसे लोगों में यही परिवार पाया जाता है |
पितृ-स्थानीय परिवार (Patri-local Family) – ऐसा परिवार जो विवाह के उपरांत पति के परिवार के साथ रहता है तो उसे पितृ स्थानीय परिवार कहते हैं | भारत में मुख्य रूप से यही परिवार पाया जाता है |
मातृ-स्थानीय (Matri-local) – विवाह के उपरांत जब वैवाहिक जोड़ा पत्नी के परिवार के साथ रहता है तो उसे मातृ-स्थानीय परिवार कहते हैं | जैसे – केरल के नायर में |
नव स्थानीय (Neo-local) – विवाह के उपरांत जब वैवाहिक जोड़ा पति या पत्नी में से किसी के परिवार को न चुनकर एक नए स्थान पर रहता है, तब इसे नव स्थानीय परिवार कहते हैं |
पितृ-सतात्मक परिवार (Patriarchal Family) – ऐसा परिवार जिसमें पुरुष या पति का आधिपत्य रहता है पारिवारिक निर्णय में पुरुष की ही मुख्य भूमिका रहती है | भारत में मुख्य रूप से यही परिवार पाया जाता है|
मातृ- सतात्मक परिवार (Matriarchal Family) – ऐसे परिवार में स्त्रियों का पुरुषों पर आधिपत्य रहता है | परिवार की समस्त बागडोर स्त्री के हाथ में होती है | उत्तर प्रदेश एवं बिहार के तराई क्षेत्रों में रहने वाली थारु जनजाति इसका उदाहरण है |
पितृ-वंशीय परिवार (Patri-lineal Family) – वह परिवार जिसमें बच्चों का वंशनाम एवं संपत्ति पिता के वंश से प्राप्त होता है तो ऐसे परिवार को पितृ-वंशीय परिवार कहते हैं | भारत में मुख्य रुप से यही परिवार पाया जाता है |
मातृ-वंशीय परिवार (Matri-lineal Family) – जब बच्चों के वंश का नाम माता के वंश के आधार पर होता है तब ऐसे परिवार को मातृ-वंशीय परिवार कहते हैं | केरल के नायरों में यही परिवार पाया जाता है |
एक-विवाही परिवार (Monogamous Family) – एक समय में पुरुष के एक पत्नी एवं स्त्री के एक ही पति हो, तब ऐसे परिवार को एक विवाही परिवार कहा जाता है | भारत में मुख्य रूप से यही परिवार पाया जाता है |
बहु-विवाही परिवार (Polygamous Family) – कोई स्त्री या पुरुष जब एक से अधिक जीवन साथी के द्वारा परिवार का निर्माण करता है | तब उसे बहु विवाही परिवार कहते हैं, जैसे – टोडा, खस, कोटा आदि जनजातियों में|
रचना के आधार पर लॉएड वार्नर (Lloyd Warner) ने परिवार को दो भागों में विभाजित किया –
(1) जन्म का परिवार (Family of orientation)
(2) जनन का परिवार (Family of procreation)
एण्डरसन ने वार्नर की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि व्यक्ति जिस परिवार में जन्म लेता है वह उसका जन्म का परिवार होता है तथा विवाह एवं संतानोत्पत्ति के द्वारा जिस परिवार का निर्माण करता है वह उसका जनन का परिवार होता है | इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में दो और प्रकार के परिवार के रूप दिखाई देते हैं –
विस्तारित परिवार (Extended Family) – यह कई नाभिकीय परिवारों का समूह होता है | इसमें निवास स्थान तो एक ही रहता है लेकिन भोजन के लिए रसोईयाँ अलग-अलग होता है, जैसे – संयुक्त परिवार से हाल ही में अलग हुए कई परिवारों का समूह|
गृहस्थ समूह (Household) – यह एक से अधिक व्यक्तियों का समूह है, जो एक ही निवास स्थान में रहते हैं आपस में रक्त या विवाह संबंधी होते हैं| यद्यपि एक या एक से अधिक ऐसे व्यक्ति होते हैं जो उनके नातेदार नहीं होते हैं, जैसे किसी परिवार में दूर का कोई रिश्तेदार या कोई नौकर स्थाई रुप से रहता हो|
Easy language
Nice classas sir 👌👌👌👌👍
Thanks Shimpee
Bahut badia classes
Thank you so much Nitin
Nice sociology chapter
Thanks NITIN
भैया बहुत अच्छा
Dhanyawaad!
धन्यवाद ????
परिवार की विस्तृत जानकारी।
धन्यवाद|