दलित (Dalit)

लघुउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न.1- दलित से क्या तात्पर्य है?

उत्तर – दलित – दलित शब्द का प्रयोग उन जातीय समूहों के लिए किया जाता है जो वर्ण व्यवस्था से बाहर एवं हिंदू सामाजिक संरचना सोपान में सबसे निम्न स्थान रखते हैं| निम्नतम स्थान का आधार इनके उस व्यवसाय से जुड़ा है जिसे अपवित्र समझा जाता है| अपवित्र व्यवसाय के कारण इन जातियों को अछूत (अस्पृश्य) समझा जाता है| जिसके कारण इन्हें सामाजिक वंचना एवं निर्योग्यताओं का सामना करना पड़ता है| परिणामस्वरूप सार्वजनिक स्थलों जैसे – मंदिरों में पूजा करना, तालाब में स्नान करना आदि की मनाही थी| निम्न सामाजिक आर्थिक स्थिति होने के कारण ये जातियाँ सदियों से भेदभाव एवं शोषण का शिकार रही हैं| भारतीय संविधान में इन्हें अनुसूचित जाति (Schedule Caste) के नाम से जाना जाता है| 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या में इनका प्रतिशत 16.66% है| अनुसूचित जाति की सबसे अधिक जनसंख्या उत्तर प्रदेश में है|

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न.1- दलित वर्ग से आप क्या समझते हैं, इनकी समस्याओं को समझाइए तथा इसके निवारण के लिए संवैधानिक प्रावधानों की चर्चा करें?

उत्तर – दलित वर्ग – दलित शब्द का प्रयोग उन जातीय समूहों के लिए किया जाता है जो वर्ण व्यवस्था से बाहर एवं हिंदू सामाजिक संरचना सोपान में सबसे निम्न स्थान रखते हैं|

अन्य नाम

दलितों के लिए अनुसूचित जाति शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1935 के भारत सरकार अधिनियम में किया गया| हट्टन ने इन्हें बाहरी जाति (Exterior Caste) सेे संबोधित किया| महात्मा गांधी ने इन्हें हरिजन शब्द से संबोधित किया|

दलितों (अनुसूचित जातियों) की समस्यायें

(1) अस्पृश्यता की समस्या|

(2) निर्धनता की समस्या|

(3) शोषण की समस्या|

(4) शिक्षा की समस्या|

(5) निम्न जीवन स्तर की समस्या|

(6) स्वास्थ्य एवं अन्य मूलभूत सुविधाओं की समस्या|

(7) बेरोजगारी की समस्या|

दलितों की समस्याओं का समाधान

दलितों की समस्या के समाधान के लिए अनेक दलित सुधार आंदोलन हुए| दलित चेतना के विकास का प्रारंभिक प्रयास दक्षिण भारत में देखने को मिलता है जहाँ वासव नामक व्यक्ति ने सामाजिक प्रतिबंधों को हटाकर सामाजिक सुधार का प्रयास किया| जो ब्राम्हण थे| इसके बाद भारत के विभिन्न दलित चिंतको ने आंदोलन द्वारा दलित चेतना का विकास किया, जिसे हम ज्योतिबा फुले से डॉ भीमराव अंबेडकर की सामाजिक-सांस्कृतिक तथा राजनीतिक यात्रा में देख सकते हैं| दक्षिण भारत में अनुसूचित जाति नादार द्वारा आंदोलन चलाया गया जो आज प्रभु जाति की स्थिति प्राप्त कर ली है|

संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provision) – स्वतंत्रता के बाद देश में स्थापित नये संविधान में दलित जातियों (अनुसूचित जाति) की परम्परागत निर्योग्यताओं तथा निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए अनेक सुरक्षात्मक एवं अधिकारों के लिए अनेक प्रावधान किया गया है| जिसमें रोजगार के लिए आरक्षण से लेकर अछूत जैसी समस्या से निजात पाने तक को शामिल किया गया है|

(1) अनुछेद 17 के तहत अस्पृश्यता (Untouchability) का उन्मूलन किया गया है|

(2) सन् 1955 में अस्पृश्यता अपराध अधिनियम (Untouchability Offences Act 1955) लागू किया गया जिसे 1978 में संसोधन कर नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम (The Protection of Civil Rights Act) नाम दिया गया|

(3) 1989 में अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (Prevention of Autrocities against Schedule Caste and Schedule Tribes) पारित किया गया| जिसे 30 जनवरी 1990 से लागू किया गया| इसे ही बोलचाल की भाषा में हरिजन एक्ट या एस.सी./एस.टी. एक्ट (SC/ST ACT) कहा जाता है इसमें दोषी को स्वयं को निर्दोष साबित करना पड़ता है|

(4) अनुछेद 330 में लोकसभा में अनुसूचित जातियों लिए स्थानों में आरक्षण का प्रावधान किया गया है|

(5) अनुछेद 332 में राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है|

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