समुदाय| समिति| संस्था (Community| Association| Institution in hindi)


समुदाय (Community) किसे कहते हैं?

समुदाय का तात्पर्य व्यक्तियों के ऐसे समूह से है ,जो किसी निश्चित भू-क्षेत्र में रहते हैं तथा सभी व्यक्ति
आर्थिक एवं राजनैतिक क्रियाओं में एक साथ भाग लेते हैं एवं एक स्वायत्त इकाई का निर्माण करते हैं | समुदाय का एक साझा मूल्य होता है जिससे वे एक दूसरे से जुड़े रहने की अनुभूति करते हैं | जैसे – गाँव, टोला ,पड़ोस ,कस्बा आदि | किंग्सले डेविस (Kingsley Davis) के अनुसार “समुदाय वह सबसे छोटा क्षेत्रीय समूह जिसके अंतर्गत जीवन के सभी पहलू आ जाते हैं |”

गिन्सबर्ग (Ginsberg) के अनुसार समुदाय एक निश्चित भू-भाग में रहने वाली वह समस्त जनसंख्या है , जो सामान्य नियमों की व्यवस्था द्वारा जीवन की अंतःक्रिया को प्रभावित कर साथ-साथ रहते हैं |

समुदाय में सामाजिक संबंधों का होना आवश्यक नहीं है, इसमें अंतः क्रिया या संबंध हो भी सकता है और नहीं भी| वस्तुतः समुदाय निर्माण का मुख्य आधार स्वजातीय चेतना (Consciousness of Kind) या हम की भावना (We Feeling) होती है |

स्वजातीय चेतना उस चेतना को कहते हैं जिसके द्वारा समुदाय के सदस्य यह अनुभव करते हैं कि वे साझे रुप से समान विचारों ,लक्षणों तथा परिस्थितियों से बधें हैं | किसी एक पर समस्या या खतरा पूरे समूह या समुदाय के संकट के रूप में महसूस किया जाने लगता है | उदाहरण के लिए यदि गाँव में किसी के यहाँ चोरी या डकैती होती है तो गांव के सभी लोग संकट या डर महसूस करने लगते हैं | यही कारण है कि समुदाय में “हम की भावना” पायी जाती है |

बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार समुदाय का विचार पड़ोस से आरंभ होकर संपूर्ण विश्व तक पहुँच जाता है|

समुदाय की विशेषताएं

(1) व्यक्तियों का समूह (Group of Individuals) – समुदाय व्यक्तियों का समूह होता है | अतः यह एक मूर्त संगठन है ,जिसमें एक दूसरे की सहायता से सभी के सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति होती है |

(2) निश्चित भू-भाग (Definite Territory) – प्रत्येक समुदाय का एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र होता है, इसे मैकाइवर स्थानीय क्षेत्र कहते हैं | कभी-कभी इस क्षेत्र में परिवर्तन भी होता है , जैसे उद्योग में वृद्धि होने से किसी गाँव की जनसंख्या में वृद्धि हो जाय , और उसके भ-ूक्षेत्र में विस्तार हो जाए |

(3) सामुदायिक भावना (Community Sentiments) – इसे हम की भावना भी कहते हैं | निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में लोगों के एक दूसरे के साथ रहने एवं जीवन की सामान्य गतिविधियों में भाग लेने से सामूहिक लगाव हो जाता है एवं समुदाय को व्यक्ति स्वयं से जोड़ लेता है | इसे ही सामुदायिक भावना कहते हैं |

(4) साझा संपूर्ण जीवन (Common Total Life) – प्रत्येक समुदाय के कुछ सामान्य नियम ,परम्पराएं, विश्वास, रीति-रिवाज आदि होते हैं ,जो उस समुदाय के लोगों को एकता के सूत्र में बाँधे रहता है | समुदाय में ही व्यक्ति की सामाजिक ,आर्थिक ,राजनीतिक , सांस्कृतिक आदि आवश्यकताओं की पूर्ति होती है , यहीं व्यक्ति का संपूर्ण जीवन व्यतीत होता है |

(5) स्वाभाविक विकास (Spontaneous Development) – समुदाय का निर्माण नियोजित रूप से नहीं किया जाता , बल्कि कुछ लोग जब एक साथ विशेष स्थान पर रहने लगते हैं , तो सभी लोगों उस समूह को अपना समूह मानने लगते हैं एवं इस तरह उनमें हम की भावना के निर्माण होने से समुदाय का निर्माण हो जाता है |

(6) आत्मनिर्भरता (Self Sufficiency) – समुदाय के व्यक्ति लगभग अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति अपने ही समुदाय से करता है , किसी अन्य समुदाय पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है |

सीमावर्ती समुदाय (Borderline Community)

मैकाइवर के अनुसार सीमावर्ती समुदाय की कुछ विशेषताएं तो समुदाय से मिलती हैं , लेकिन कुछ विशेषताएं समुदाय से भिन्न होती हैं | समुदाय की विशेषताओं के आधार पर यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि यह समुदाय है अथवा नहीं | मैकाइवर ने ऐसे समूह को सीमावर्ती समुदाय कहा है | उनके अनुसार जाति, आधुनिक पड़ोस एवं जेल सीमावर्ती समुदाय के उदाहरण हैं |

समिति (Association) किसे कहते हैं?

मनुष्य अपने दिन-प्रतिदिन की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति समुदाय से कर लेता है , किंतु उसके विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति समुदाय से नहीं हो पाती है | अतः विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जब कुछ लोग संगठन बनाकर प्रयत्न करते हैं , तो ऐसे संगठन को समिति कहा जाता है | समिति में संगठित सामाजिक संबंध पाया जाता है एवं यह शक्ति के विभाजन पर आधारित होता है, जैसे किसी समिति का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष अन्य सदस्य आदी | समिति के सदस्यों के उद्देश्य समान होते हैं | इस तरह समिति आर्थिक ,राजनीतिक ,धार्मिक ,सांस्कृतिक ,मनोरंजनात्मक उद्देश्यों के लिए कि प्राप्ति के लिए हो सकती है |

मैकाइवर एवं पेज (Maciver and Page) के अनुसार "समिति मनुष्यों का एक समूह है जिसे किसी सामान्य उद्देश्य या उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संगठित किया जाता है |"
बोटोमोर (Bottomore) के अनुसार राज्य समाज के अंदर एक समिति है न कि पूर्ण समाज |
बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार "समिति से तात्पर्य लोगों का किसी खास उद्देश्य के लिए साथ-साथ कार्य करना है |"

समिति की विशेषताएं (Characteristics of Association)

(1) व्यक्तियों का समूह (Group of Individuals) – समिति का निर्माण कुछ लोग अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए साथ मिलकर करते हैं | इस तरह यह एक मूर्त संगठन भी है |

(2) निश्चित उद्देश्य – उद्देश्य के निर्धारण के बाद ही समिति का निर्माण किया जाता है | किसी भी उद्देश्यहीन समूह को समिति नहीं कहा जा सकता है |

(3) एक औपचारिक संगठन (A Formal Organization) – समिति के सदस्यों का कार्य निश्चित नियमों के अनुसार निर्धारित कर दिया जाता है एवं प्रत्येक सदस्य शक्ति के विभाजन के आधार पर औपचारिक रूप से संगठित होकर कार्य करते हैं |

(4) ऐच्छिक सदस्यता (Voluntary Membership) – किसी भी समिति का सदस्य बनना या न बनना पूर्णतः व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है | व्यक्ति अपने हित या रुचि के अनुसार समिति का सदस्य बन सकता है एवं अपनी इच्छानुसार सदस्यता से त्यागपत्र दे सकता है |

(5) अस्थाई प्रकृति (Temporary Nature) – समिति साधारणत: कुछ निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बनायी जाती है | उद्देश्यों की प्राप्ति हो जाने पर समिति को समाप्त कर दिया जाता है |

(6) साध्य न होकर साधन (Means not End) – समिति स्वयं में साधन न होकर उद्देश्य प्राप्त करने का साधन है | जैसे यदि कोई व्यक्ति किसी मनोरंजन क्लब का सदस्य है तो क्लब उसके मनोरंजन का साधन है न कि अपने आप में साध्य |

मैकाइवर एवं पेज (Maciver and Page) के अनुसार छात्रसंघ ,राजनीतिक दल ,ट्रेड यूनियन , क्लब एवं व्यावसायिक संघ समिति के उदाहरण हैं |

समुदाय एवं समिति में अंतर (Difference between Community and Association)

समुदाय के द्वारा व्यक्ति की सामान्य आवश्यकता की पूर्ति होती है | लेकिन विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति समुदाय द्वारा नहीं हो पाती है , इस पूर्ति के लिए जब व्यक्ति अपने जैसे हित वाले व्यक्तियों के साथ तालमेल करता है एवं परस्पर सहयोग कर संगठित रूप सेे हितों को पूरा करने के लिए समूह का निर्माण करता है तो इसे समिति कहते हैं , जैसे क्रिकेट खेलने में रूचि लेने वाले व्यक्ति क्लब बनाकर सदस्य बन जाते हैं |

(1) समुदाय एक बड़ा मानव समूह होता है जबकि समिति में अपेक्षाकृत कम सदस्य होते हैं |

(2) समुदाय का एक निश्चित भू-क्षेत्र होता है,जबकि समिति भू-क्षेत्र से बँधी नहीं होती है |

(3) समुदाय का विकास स्वतः होता है, जबकि समिति को विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कृत्रिम रुप से बनाया जाता है |

(4) समुदाय की सदस्यता अनिवार्य होती है जबकि समिति की सदस्यता ऐच्छिक होती है

(5) समुदाय, प्रथाओं एवं परंपराओं के माध्यम से कार्य करती है , जबकि समिति निर्मित नियम के माध्यम से कार्य करती है |

(6) समुदाय में हम कि भावना प्रमुख तत्व होता है,जबकि समिति में हम की भावना आवश्यक नहीं है |

(7) समुदाय में व्यक्ति के समग्र जीवन का एक बड़ा भाग शामिल होता है,जबकि समिति में समग्र जीवन का छोटा भाग शामिल होता है |

संस्था (Institution) किसे कहते हैं|

संस्थान नियमों एवं कार्य-प्रणालियों की एक व्यवस्था है | यह अमूर्त होता है | जब एक ही इकाई को व्यक्तियों के संगठन के रूप में देखते हैं तो उसे हम समिति कहते हैं | लेकिन जब उसे एक निर्धारित एवं मान्य प्रणाली के रूप में देखते हैं तो वह संस्था हो जाती है | जैसे स्कूल , हॉस्पिटल आदि सदस्यों के रूप में समिति है लेकिन कार्य प्रणालियों के रुठ में संस्था है |

किंग्सले डेविस (Kingsley Davis) के अनुसार "संस्था जनरीतियों एवं रूढ़ियों का ऐसा संगठन है ,जो अनेक कार्यों को करती है |"

संस्था के उद्विकासीय क्रम की चर्चा सर्वप्रथम डब्लू. जी. समनर (W. G. Sumner) ने अपनी पुस्तक फॉकवेज (Folkways) में किया एवं संस्थाओं को चरम जनरीतियों (Institutions are super folkways) से संबोधित किया | उनके अनुसार कोई विचार (Idea) या क्रिया की पुनरावृत्ति जब व्यक्तिगत स्तर पर होती है तो इसे आदत (Habit) कहते हैं ,जब इसे समूह द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है तो इसे जनरीति (Folkways) कहा जाता है |

जनरीतियों के अंतर्गत व्यवहार के तरीके एवं शिष्टाचार आदि आते हैं , जो लोगों पर बाध्य तो नहीं होते लेकिन ऐसा करने की अपेक्षा समाज जरूर करता है | जनरीति में जब सामूहिक कल्याण की भावना एवं नैतिकता (Ethics) जुड़ जाती है तब यह लोकाचार (Mores) में बदल जाती है | लोकाचार वे नियम हैं जो लोगों पर बाध्य होते हैं | नियमों की अवहेलना व्यक्ति को दण्ड का भागीदार बनाता है ,जैसे – ड्रग लेना , धार्मिक कार्यों में विपरीत वस्त्र पहनना | लोकाचार के नियम जब एक निश्चित संरचना में व्यवस्थित हो जाते हैं ,तब उसे संस्था (Institution) कहा जाता है |

अतीत से जुड़ी हुई जनरीतियों को प्रथा (Custom) कहते हैं | प्रथा का अनुपालन हम इसलिए करते हैं कि अतीत में ऐसा होता आया है | एलेक्स इंकल्स (Alex Inkeles) के अनुसार जनरीतियों को वैकल्पिक रुप से प्रथा कहा जाता है | (Folkways alternatively called customs) किसी देश के कानून निर्माण में प्रथा का बहुत ही महत्त्व होता है |

कहीं-कहीं तो प्रथागत कानून (Customary Law) पाए जाते हैं | जनजातीय समाज में तो प्रथा ही कानून के रूप में कार्य करता है | रूथ बेनेडिक्ट (Ruth Benedict) के अनुसार प्रथा वह चश्मा है ,जिसके बिना देखा नहीं जा सकता |(Custom is the lens without which one can not see at all.)

पारसन्स (Parsons) ने समाज के अस्तित्व के लिए पाँच मूलभूत संस्थाओं की चर्चा की है -

(1) परिवार (Family) (2) अर्थव्यवस्था (Economy) (3) राज व्यवस्था (Polity)
(4) शिक्षा (Education) (5) धर्म (Religion)
समनर ने संस्था को दो श्रेणियों में विभाजित किया -

(1) स्वत: निर्मित (Crescive) - इसकी उत्पत्ति लोकाचार से होती है | इसकी उत्पत्ति अचेतन रूप से होती है जैसे -संपत्ति ,विवाह ,धर्म आदि |

(2) निर्मित (Enacted) - निश्चित उद्देश्य के लिए चेतन रुप से संगठित किया जाता है ,जैसे - स्कूल ,कॉलेज ,बैंक आदि |
बेलार्ड (Ballard) ने संस्था के दो प्रकार बताए हैं -

(1) मूलभूत संस्थाएं (Basic Institutions) - यह सामाजिक व्यवस्था के लिए आवश्यक मानी जाती है ,जैसे परिवार ,अर्थव्यवस्था ,धर्म राजनीति व्यवस्था, शिक्षण व्यवस्था |
(2) सहायक संस्थाएं (Subsidiary Institutions) - यह समाज की व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक नहीं मानी जाती है ,जैसे - मनोरंजनात्मक संस्था |

संस्था की विशेषताएं

(1) रीति-रिवाज एवं कार्य-प्रणालियों की व्यवस्था (System of usage and Procedures) – संस्था व्यक्तियों का समूह न होकर नियमों एवं कार्य-प्रणालियों की व्यवस्था है | जब जनरीतियाँ, प्रथाएं आदि अधिक विकसित हो जाती हैं, तब इनसे संबंधित व्यवस्थित नियम बन जाते हैं जिन्हें संस्था कहते हैं |

(2) सुस्पष्ट उद्देश्य (Well defined objectives) – प्रत्येक संस्था के स्पष्ट उद्देश्य होते हैं जो सांस्कृतिक प्रतिमानों से बँधे रहते हैं , जैसे विवाह एक संस्था है इसका उद्देश्य संबंधों को नियंत्रित करना होता है |

(3) संस्कृति की वाहक (Transmitter of Culture) -संस्थाएं संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित करती हैं ,उदाहरण के लिए परिवार एक संस्था है जो संस्कृति के हस्तांतरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है |

(4) अमूर्त प्रकृति (Abstract Nature) – संस्थाएं रीति- रिवाज एवं कार्य-प्रणालियों का एक गुच्छा है ,जो दिखाई नहीं देता | अतः यह अमूर्त है |

(5) स्थाई प्रकृति (Permanent Nature) – व्यवहार का कोई तरीका जब लंबे समय तक अपनी उपयोगिता सिद्ध कर देता है ,तभी वह संस्था का स्वरूप ग्रहण करता है | अतः इसकी प्रकृति स्थाई होती है|

समिति एवं संस्था में अंतर (Difference between Association and Institution)

संस्था नियमों की व्यवस्था है,जबकि समिति व्यक्तियों का समूह होता है | इस तरह समिति में भी जो नियम पाये जाते हैं ,उसे संस्था कहते हैं | इसीलिए मैकाइवर एवं पेज (Maciver and Page) ने कहा है कि संस्थाएं समितियों के माध्यम से कार्य करती हैं |

जहाँ नियम प्राथमिक होंगे वह संगठन संस्था के रूप में जाना जाने लगता है एवं जहाँ व्यक्ति प्राथमिक एवं नियम गौण हो जाते हैं ,उसे मुख्यतः समिति के रूप में जाना जाता है | संस्था एवं समिति में अंतर को निम्न
बिंदुओं में भी देखा जा सकता है –

(1) समिति व्यक्तियों का संग्रह है, जबकि संस्था नियमों के संग्रह को व्यक्त करती है |

(2) समिति मूर्त होती है, जबकि संस्था अमूर्त होती है |

(3) समिति स्थायी प्रकृति की होती है, जबकि संस्था अपेक्षाकृत स्थायी होती है|

(4) समिति में निश्चित एवं सीमित लक्ष्य होते हैं,जबकि संस्था ,समितियों के लक्ष्य को प्राप्त करने के नियम रूपी साधन होते हैं |

(5) समिति को किसी विशेष लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निर्मित किया जाता है, जबकि संस्था का निर्माण धीरे-धीरे स्वाभाविक रूप से होता है |

(6) समिति व्यक्तिगत हितों को अधिक महत्व देता है, जबकि संस्था सामूहिक हितों को अधिक महत्व देता है |

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