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हरबर्ट ब्लूमर, मीड के विचारों को आगे बढ़ाते हैं तथा अंतःक्रिया के व्यावहारिक स्वरूप की चर्चा करते हैं| ब्लूमर के अनुसार वस्तुओं एवं प्रतीकों में निहित अर्थ ही हमारी भूमिकाओं का निर्माण करते हैं| ब्लूमर का प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद तीन दृष्टिकोण (Perspective) पर आधारित है –
(1) मनुष्य अर्थ के आधार पर वस्तुओं की ओर क्रिया करता है|
(2) वस्तुओं का अर्थ दूसरों के साथ सामाजिक अंतःक्रिया करने से ही निकलकर सामने आता है|
(3) अर्थ को वार्तालाप (encounters) के दौरान निर्वचन (interpretation) द्वारा संशोधित किया जा सकता है|
ब्लूमर के अनुसार अंतःक्रिया में भाग लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों की क्रियाओं को समझकर अपने अंतःक्रिया की दिशा निर्धारित करते हैं| ब्लूमर कहते हैं कि बाहरी पर्यावरण व्यक्ति की भूमिका को प्रभावित तो करता है लेकिन निर्धारित नहीं करता| किसी परिस्थिति विशेष में व्यक्ति किस तरह की भूमिका का संपादन करेगा, यह उसके स्वः के द्वारा निर्धारित होता है|
ब्लूमर के अनुसार स्वः में परिवर्तन होने के कारण भूमिका में भी परिवर्तन होता है तथा सामाजिक क्रिया के अर्थ एवं प्रतीक भी परिवर्तित होता रहता है| इसलिए समाज का स्थायित्व के रूप में अध्ययन न कर प्रक्रिया के रूप में अध्ययन किया जाना चाहिए|
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I hope it’s better to all sociology students .thanks