अवलोकन पद्धति: सहभागी,गैर-सहभागी,अर्द्ध सहभागी,नियंत्रित एवं अनियंत्रित| गुण एवं दोष

अवलोकन पद्धति (observation method)

किसी सामाजिक घटना का उद्देश्यपूर्ण निरीक्षण ही अवलोकन है| जब कोई अध्ययनकर्ता किसी शोध समस्या या शोध प्रश्न को ध्यान में रखता है| इस प्रश्न के उत्तरों की खोज में इन्द्रिय अनुभव के आधार पर आंकड़ा इकठ्ठा कर उत्तर प्राप्त करता है, तो इस प्रक्रिया को अवलोकन कहते हैं|

सामाजिक अनुसन्धान में अवलोकन एक महत्त्वपूर्ण आंकड़ा संकलन पद्धति है|

अवलोकन पद्धति का उदहारण

अवलोकन को यदि एक उदहारण से समझाएं तो मान लीजिये आप अपने कॉलेज में है, और मैंने पूंछा कि अभी यहाँ से जो व्यक्ति गया वह किस रंग का कपडा पहना था| आप कहेंगे की कोई गया जरूर, लेकिन मैंने ध्यान नहीं दिया| यदि मैं आपसे फिर कहूँ कि अब यदि कोई जाये तो देखना| अब एक व्यक्ति जाता है तो आप बता देते है कि वह किस रंग का कपड़ा पहना था| यही नहीं साथ में आप यह भी बता देतें हैं कि उसे हाथ में किताब ली थी, और वह लाइब्रेरी की तरफ देखते हुए जा रहा था| जब आपने व्यक्ति को उद्देश्यपूर्ण तरीके से देखा तो यही अवलोकन है|

जॉन डोलार्ड (John Dollard) के अनुसार “अनुसन्धान की सबसे प्राथमिक प्रविधि मानवीय अनुभवों पर आधारित वह अवलोकन है जिसके द्वारा महत्त्वपूर्ण घटनाओं को ज्ञात किया जा सकता है”|

अवलोकन का अर्थ

अवलोकन अंग्रेजी के शब्द observation का हिन्दी रूपांतरण है, जिसका अर्थ है ज्ञानेन्द्रियों द्वारा वाह्य जगत के बारे में ज्ञान प्राप्त करना|

अवलोकन के लिए खुला दिमाग होना चाहिए| पूर्वाग्रह ग्रसित नहीं| अतः समाजशास्त्रिय प्रशिक्षण द्वारा एक व्यक्ति को अनुसंधानकर्ता की विशेषताओं या क्षमताओं से लैस किया जाता है| जिससे शोधकर्ता के मस्तिष्क का पूर्वाग्रह दूर किया जा सके| वेबर के शब्दों में यह मूल्य निरपेक्षता की स्थिति प्राप्त करना है|

पूर्वाग्रह से ग्रस्त मस्तिष्क से अवलोकन करने पर वह समाजशास्त्रीय मांगो के अनुरूप नहीं होगा|

अवलोकन की परिभाषा

सी. ए. मोजर (C. A. Moser) के अनुसार “अवलोकन का तात्पर्य कानों अथवा वाणी के स्थान पर स्वयं अपनी दृष्टि का अधिकाधिक उपयोग करना है”|

पी. वी. यंग (P. V. Young ) के अनुसार “अवलोकन घटनाओं के स्वाभाविक रूप से घटित होते समय नेत्रों द्वारा किया गया सुव्यवस्थित और सुविचारित अध्ययन है”|

अवलोकन के प्रकार (types of observation in Hindi)

अवलोकन के मुख्यतः तीन प्रकार हैं-

1. सहभागी अवलोकन

2. गैर-सहभागी/असहभागी अवलोकन

3. अर्द्ध सहभागी अवलोकन

सहभागी एवं गैर-सहभागी अवलोकन, दोनों प्रकारों का अपना एक विशिष्ट महत्त्व है|

1. सहभागी अवलोकन

सहभागी अवलोकन शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग एडवर्ड लिंडमैन ने अपने पुस्तक सोशल डिस्कवरी (Social Discovery) में किया था| लिंडमैन के अनुसार “घटनाओं के यथार्थ अध्ययन के लिए उनके बारे में प्रश्न करना नहीं बल्कि अध्ययन किये जाने वाले समूह को स्वय देखना आवश्यक होता है”|

सहभागी अवलोकन में अनुसंधानकर्ता स्वयं समूह या समुदाय का सदस्य बन जाता है, जिसका उसे अध्ययन करना होता है| इसमें अनुसंधानकर्ता निरीक्षित समूह की भाषा रहन-सहन आदि कुछ इस तरह अपना लेता है कि उस समूह के लोग उसे अपने सदस्य के रूप में जानने लगते हैं| इस तरह सहभागी अवलोकन द्वारा शोधकर्ता समूह के उन तथ्यों से भी परिचित हो जाता है, जो उस समूह के गोपनीय तथ्य माने जाते हैं; तथा वाह्य समूह इन तथ्यों से अनभिज्ञ होता है| मैलिनॅास्की ने पश्चिमी प्रशांत महासागर के तट पर रहने वाली एग्रोनॅाट जनजाति, नेल एंडरसन ने होबो लोगों के जीवन का अध्ययन तथा रेमंड फ़र्थ ने टिकोपिया जनजाति का अध्ययन सहभागी अवलोकन द्वारा किया था|

सहभागी अवलोकन की विशेषताएँ

1. सहभागी अवलोकन द्वारा घटना का स्वाभाविक अध्ययन होता है|

2. इसमें घटना या समस्या का प्रत्यक्ष अवलोकन होता है|

3. इसमें मानवीय ज्ञानेन्द्रियो द्वारा निकर्ष प्राप्त किया जाता है|

4. इसके द्वारा सामाजिक घटनाओं के बीच पाए जाने वाले कार्य-कारण संबंधों को भी ज्ञात किया जाता है|

5. अवलोकन प्राविधि द्वारा हम सरल एवं गैर-साक्षर समाजों का भी यथार्थवादी अध्ययन कर सकते हैं|

6. इसके द्वारा सामाजिक जीवन से जुड़े मात्रात्मक पक्षों से सम्बंधित सुचना के साथ गुणात्मक या व्यक्तिनिष्ठ पहलुओं से जुडी जानकारियां भी प्राप्त होती है|

सहभागी अवलोकन के गुण (merits of participant obsevation in Hindi)

1. यथार्थ व्यवहारों का अध्ययन

2. घटना का स्वाभाविक अध्ययन

3. प्रत्यक्ष अध्ययन

4. अध्ययन अधिक विश्वसनीय एवं वैध

5. अध्ययन की सत्यापनियता

सहभागी अवलोकन की सीमाएं/दोष (demerits of participant obsevation in Hindi)

1. इस पद्धति में लम्बी अवधि की आवश्यकता होती है, जिससे व्यय की मात्रा अधिक हो जाती है|

2. वस्तुनिष्ठ अध्ययन प्रायः संभव नहीं हो पाता, क्योंकि शोधकर्ता अवलोकित समूह से प्रायः अपना भावनात्मक लगाव स्थापित कर लेता है|

3. इस पद्धति का प्रयोग लघु आकार के समूहों अथवा क्षेत्रों में ही संभव है|

4. कुछ समूहों का सहभागी अवलोकन संभव नहीं है, जैसे- चोरों एवं डाकुओं का समूह|

असहभागी अवलोकन (non-participant observation in Hindi)

अवलोकन की इस पद्धति में अनुसंधानकर्ता निरीक्षित समूह का अंग नहीं बनता| वह कुछ सामाजिक दूरी बनाये रखकर तथा तटस्थ होकर निरीक्षण करता है| इस अवलोकन में अनुसंधानकर्ता निश्चित समय पर जाकर उस समूह का अध्ययन करता है| इस अवलोकन से समूह के सदस्य के व्यक्तिगत गोपनीय तथ्यों का पता चलता है, जिसे वे अपने समूह में निंदा की वजह से नहीं बताते| इसे हम तकनीकि शब्दावली में स्ट्रेंजर वैल्यू कहते हैं|

इस पद्धति में समूह के सदस्य अनुसंधानकर्ता को बाहरी व्यक्ति समझने से वे तथ्य भी प्रकट कर देते हैं, जो समूह के सदस्यों को निंदा के डर से नहीं बताते हैं|

असहभागी अवलोकन की विशेषताएं/गुण

1. असहभागी अवलोकन पद्धति में वस्तुनिष्ठ अध्ययन संभव हो जाता है, क्योंकि अवलोकनकर्ता निरीक्षित समूह के कार्यों से अपने को अलग रखता है|

2. इस पद्धति में प्रत्येक घटना का शोधकर्ता सूक्ष्म व्यौरा देता है|क्योंकि इस पद्धति में हर घटना अनोखी, नई एवं तात्कालिक होती है|

3. इस पद्धति से घटना का सामान्य अध्ययन होता है, जिससे धन एवं समय की बचत हो जाती है|

4. इस पद्धति से विस्तृत रूप से घटना का अध्ययन किया जा सकता है|

असहभागी अवलोकन की सीमायें/दोष

1. पूर्णतः विशुद्ध असहभागी अवलोकन असंभव है| गुडे एवं हैट भी इससे सहमति व्यक्त करते है|

2. इसमें व्यक्तिगत पक्षपात के समावेश होने के सम्भावना रहती है| क्योंकि घटनाओं को समझने में अवलोकनकर्ता के स्वयं के दृष्टिकोण का भी समावेश हो जाता है|

3. इस पद्धति के अंतर्गत अध्ययन समूह का सतही अध्ययन ही संभव है|

4. इस पद्धति में अवलोकनकर्ता कई घटनाओं एवं क्रियाओं का महत्त्व समझने में असफल हो जाता है|

सहभागी एवं असहभागी में कौन अधिक उपयुक्त

सहभागी तथा असहभागी अवलोकन में कौन सी विधि अधिक उपयुक्त है, इसका निर्णय निरपेक्ष रूप से नहीं किया जा सकता| इसका निर्णय इस बात पर निर्भर है कि किस व्यवहार का अध्ययन, किस तरह की परिस्थिति में एवं किस उद्देश्य से किया जा रहा है| किन्तु इतना अवश्य है की सहभागी अवलोकन पद्धति का उपयोग वहां अधिक लाभप्रद है, जहाँ शोधकर्ता को अन्य दूसरी विधियों से सूचना संग्रह करने में सफलता प्राप्त नहीं होती है|

3. अर्द्ध सहभागी अवलोकन (quasi-participant observation)

यह पद्धति सहभागी एवं असहभागी अवलोकन दोनों का मिश्रित रूप है| सामान्यतः देखा जाता है कि पूर्ण सहभागी अवलोकन से अध्ययन की वस्तुनिष्ठता समाप्त होने का संशय बना रहता है| इधर असहभागी अवलोकन द्वारा बहुत से अनिवार्य तथ्यों के छूटने का डर बना रहता है| ऐसी स्थिति में एक ऐसी पद्धति आवश्यक हो गयी थी, जो दोनों पद्धतियों के साथ न्याय कर सके|

गुडे एवं हैट के अनुसार अनियंत्रित अवलोकन की तीनों पद्धतियों में अर्द्ध सहभागी अवलोकन सबसे अधिक उपयुक्त है|

ह्वाईट (W. F. Whyte) ने भी कहा है कि सामाजिक तथ्य जटिल हैं, अतः इसका पूर्ण सहभागी अध्ययन करना बहुत अव्यावहारिक है|

नियंत्रण के आधार पर अवलोकन दो प्रकार का होता है|

1. नियंत्रित अवलोकन (controlled observation)

नियंत्रित अवलोकन में अवलोकनकर्ता एक निश्चित एवं स्पष्ट नियम के अनुरूप अवलोकन करता है| इस तरह के अवलोकन की नियमावली वैज्ञानिक एवं तार्किक क्रम पर आधारित होती है|

2. अनियंत्रित अवलोकन (uncontrolled observation)

अनियंत्रित अवलोकन में परिस्थितियाँ स्वाभविक होती हैं| जिनका अवलोकन किया जा रहा है, वे इस बात से अवगत होते हैं| इसमें अवलोकनकर्ता न तो कोई नियम अपनाता है और न ही किसी वैज्ञानिक तार्किक क्रम पर अपने अवलोकन को आधारित करता है|

नियंत्रित एवं अनियंत्रित अवलोकन में अन्तर

1. नियंत्रित अवलोकन में व्यक्ति या घटना पर नियंत्रण लगाया जाता है| जबकि अनियंत्रित अवलोकन में घटना को उसे रूप में देखा जाता है, जिस रूप में वह वास्तव में है|

2. नियंत्रित अवलोकन के किसी उपकरण के माध्यम से घटना में परिवर्तन कर उसका अध्ययन किया जाता है| जबकि अनियंत्रित अवलोकन में घटनाओं पर अवलोकनकर्ता का नियंत्रण नहीं रहता है|

3. नियंत्रित अवलोकन में शोधकर्ता पर भी  एक निश्चित परिस्थिति के अन्दर रहकर अवलोकन की अनुमति होती है| इससे शोधकर्ता की स्वाभाविकता अध्ययन में भ्रमित हो सकती है| जबकि नियंत्रित अवलोकन में शोधकर्ता पर कोई नियंत्रण नहीं रहता है|

4. नियंत्रित अवलोकन के अंतर्गत पहले से ही एक योजना बना ली जाती है| उसी योजना के अनुसार शोधकर्ता अवलोकन करता है| जबकि अनियंत्रित अवलोकन में शोधकर्ता स्वाभाविक रूप से एवं घटना की परिस्थिति के अनुसार अवलोकन करता है|

5. नियंत्रित अवलोकन में शोधकर्ता के व्यवहारों पर नियंत्रण होने के कारण पक्षपात की सम्भावना न रह पाती है| जबकि नियंत्रित अवलोकन में शोधकर्ता पर किसी भी तरह की पाबन्दी नहीं रहती है, इसलिए पक्षपात की सम्भावना बनी रहती है|

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