अपराध के सिद्धांत

व्यक्ति अपराध क्यों करता है? इसके लिए अनेक दृष्टिकोण एवं सिद्धांतो का निर्माण हुआ है| इसे हम मुख्य रूप से तीन भागों में बाँट सकते हैं –


(1) अपराध का शारीरिक या जैवकीय या प्रत्यक्षवादी सिद्धांत 


(2) अपराध का मनोवैज्ञानिक सिद्धांत 

(3) अपराध का समाजशास्त्रीय सिद्धांत 


(1) अपराध का शारीरिक या जैवकीय या प्रत्यक्षवादी सिद्धांत (Physical or Biological or Positivistic Theory of Crime) –   

              इस सिद्धांत के जनक इटली के अपराधशास्त्री लोम्ब्रोसो (Lombroso) हैं| इस सिद्धांत के अनुसार कुछ व्यक्तियों में शारीरिक संरचना अन्य से भिन्न होती है अतः ऐसे व्यक्ति में  असामान्य व्यवहार या अपराधी प्रवृत्ति की संभावनाएं बहुत अधिक होती है| इस संप्रदाय के प्रमुख समर्थकों में गैरोफेलो (Garofelo) तथा एनरिको फेरी (Enrico Ferri) हैं|

                   लोम्ब्रोसो के अनुसार अपराधी जन्मजात होते हैं| (Criminals are born) अपराधी ऐसा व्यवहार करता है क्योंकि वह ऐसा पैदा हुआ है|


                        लोम्ब्रोसो लिखते हैं कि विचलकों में कुछ जैवकीय या शारीरिक दोष होते हैं| जो जन्मजात या अनुवांशिक होते हैं| ये दोष पूर्व मानव (आदि मानव) के लक्षण को प्रदर्शित करते हैं| जैसे – बड़ा जबड़ा, बड़ा कान, पैर की अंगुलियों का लंबा होना आदि|                                            

लोम्ब्रोसो इटली के चिकित्सक थे| उन्होंने सैनिकों के अध्ययन में पाया कि आक्रामक प्रवृत्ति वाले सैनिकों के शरीर पर गुदे हुए चित्र भद्दे थे| जबकि शांत प्रवृत्ति वाले सैनिकों के शरीर पर गुदे हुए चित्र सामान्य एवं सरल थे| यही नहीं लोम्ब्रोसो ने मरे हुए अपराधियों की खोपड़ी का भी अध्ययन किया एवं पाया कि उसके खोपड़ी की बनावट सामान्य लोगों से भिन्न है| इन्ही अध्ययनों के आधार पर लोम्ब्रोसो ने निष्कर्ष दिया कि अपराधी जन्मजात होते हैं|

एनरिको फेरी (Enrico Ferri) ने जैवकीय लक्षण के साथ सामाजिक पर्यावरण को भी अपराध के लिए जिम्मेदार बताया| उनके अनुसार अस्वस्थ सामाजिक व्यवस्था आपराधिक शारीरिक लक्षण वालों को अपराध की ओर आकर्षित करती है| 
जैवकीय सिद्धांत को समर्थन देने के बावजूद फेरी का यह दृढ़ विश्वास था कि अपराध मुख्यतः समाज (प्रतिकूल सामाजिक परिस्थिति) द्वारा उत्पन्न किया जाता है| अतः सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन कर इसे कम किया जा सकता है|


गैरोफेलो ने प्राकृतिक अपराध का सिद्धांत (Theory of Natural Crime) प्रस्तुत किया| इस सिद्धांत के अनुसार अपराध दो प्रकार के होते हैं –


(1) वह अपराध जिसमें हिंसा हो|


(2) सम्पत्ति के विरुद्ध अपराध|

               

उपर्युक्त दोनों प्रकार की अपराध के लिए गैरोफेलो दो प्रकार के भावनाओं (sentiments) को जिम्मेदार मानते हैं|  ये परार्थवादी भावनाएं (altruistic sentiments) हैं –


(1) Pity इसका तात्पर्य – व्यक्ति के लिए सम्मान (respect for people)


(2) Probity – इसका तात्पर्य – सम्पत्ति के लिए सम्मान (respect for property)
           

 गैरोफेलो के अनुसार हिंसक अपराधी Pity भावनाओं के विपरीत अपराध करते हैं जबकि चोरों में तो Probity का अभाव पाया जाता है|
परार्थवादी भावनाओं के आधार पर व्याख्या के बावजूद गैरोफेलो यह मानते हैं कि अपराधी अनुवांशिक या बचपन में ही ऐसे हो जाते हैं| जिससे उनमें नैतिकता (sense) का अभाव होता है| जो इन्हें नये अपराध की तरफ ले जाता है| इसलिए गैरोफेलो कहते हैं कि अपराधियों का पुनर्वास कुछ अपवाद मामलों को छोड़कर नहीं किया जा सकता|

हैंस आइसेंक (Hans Eysenck) ने अनुवांशिक का तथा विचलित व्यवहार में स्पष्ट कार्य-कारण संबंध स्थापित किया|

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