दुर्खीम का आत्महत्या का सिद्धान्त
दुर्खीम आत्महत्या सिद्धान्त; दुर्खीम से पूर्व आत्महत्या को मनोविज्ञान की विषयवस्तु माना जाता था; लेकिन दुर्खीम ने अध्ययन के बाद इसे सामाजिक प्रघटना माना| इसका मूल कारण सामाजिक तथ्य है| इसलिए आत्महत्या व्यक्ति सापेक्षिक न होकर समाज सापेक्षिक होता है| आत्महत्या व्यक्ति एवं समाज की अंतःक्रिया का परिणाम होता है|
आत्महत्या की विवेचना
दुर्खीम ने अपनी पुस्तक सुसाइड (Suicide) में आत्महत्या का सिद्धान्त प्रस्तुत किया| उन्होंने आत्महत्या एवं समाज के बीच कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित किया| उनका विश्लेषण मनोवैज्ञानिक आधार पर न होकर; समाजशास्त्रीय आधार पर था| फ्रांस के आत्महत्या के आंकड़ों के अध्ययन में उन्होंने पाया कि; आत्महत्या व्यक्तिगत घटना न होकर सामूहिक अंतःक्रिया का परिणाम है| यह एक सामाजिक तथ्य है; जिस पर वाह्यता, वाध्यता एवं सामान्यता के नियम लागू होते हैं| दुर्खीम आगे लिखते हैं कि यदि सामाजिक दशाओं में परिवर्तन न किया जाय; तो आत्महत्या की दर स्थिर बनी रहेगी|
आत्महत्या के प्रकार (types of suicide in hindi)
दुर्खीम ने अपने आत्महत्या के सिद्धान्त में एकीकरण (integration) एवं (regulation) नियमन के आधार पर चार प्रकार के आत्महत्या की चर्चा की –
1. अहम्-वादी आत्महत्या (Egoistic Suicide)
जब समाज में सामाजिक एकीकरण; या परस्पर निर्भरता की मात्रा में अत्यधिक कमी होने लगती है; तब व्यक्ति सामूहिक सहयोग न लेकर व्यक्तिगत प्रयास द्वारा लक्ष्य प्राप्त करना चाहता है| वह व्यक्तिवादी हो जाता है; ऐसी स्थिति में यदि उसे असफलता मिलती है, तो वह स्वयं को दोषयुक्त मानने लगता है| इस विषम परिस्थिति में उसे अपने कोई नजर नहीं आता| उसे अपना जीवन भी अर्थहीन लगने लगता है| इस विषम परिस्थिति से मुक्ति पाने के लिए वह आत्महत्या का प्रयास करता है| उदहारण के लिए- अविवाहितों द्वारा किया जाने वाला आत्महत्या|
2. परार्थवादी आत्महत्या (Altruistic Suicide)
परार्थवादी आत्महत्या की स्थिति तब उत्पन्न होती है; जब समाज में एकीकरण की मात्रा बढ़ जाती है| इस स्थिति में मनुष्य अपने व्यक्तिगत पहचान को सामूहिक पहचान में विलीन कर देता है| जिससे व्यक्ति सामूहिक अस्तित्व पर आने वाले किसी संकट को व्यक्तिगत संकट के रूप में स्वीकार करता है| जैसे- युद्ध के क्षेत्र में सैनिकों द्वारा प्राणों को न्योछावर कर देना|
3. प्रतिमानहीनता आत्महत्या (Anomic Suicide)
जब समाज में नियमन की कमी होने लगती है; या यूँ कहें कि सामाजिक नियंत्रण में कमी आने लगती है तो; समाज तेजी से परिवर्तन का शिकार हो जाता है| इससे मूल्य शून्यता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है| व्यक्ति यह तय नहीं कर पाता कि; क्या करें, क्या न करें| इसकी स्वाभाविक परिणति आत्माहत्या में होती है| जैसे- अचानक आर्थिक संकट
4. भाग्यवादी आत्महत्या (Fatalistic Suicide)
भाग्यवादी आत्महत्या की स्थिति तब उत्पन्न होती है; जब समाज में नियमन बहुत अधिक हो जाता है| जो व्यक्ति इसका शिकार होता है, उसे कोई अन्य रास्ता नजर नहीं आता| यह स्थिति व्यक्ति को आत्महत्या की ओर प्रेरित करती है| उदहारण की लिए- दासों द्वारा किया जाने वाला आत्महत्या; या बाँझ औरत द्वारा किया जाने वाला आत्महत्या|
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