धर्म शब्द का प्रयोग अलौकिक शक्ति में विश्वास के लिए किया जाता है | इस विश्वास का प्रभाव मानवीय जीवन के व्यवहार पर भी पड़ता है जिसे मनुष्य पूजा, आराधना एवं विभिन्न कर्मकाण्डों के माध्यम से चालित करता है | विश्व में कोई भी समाज ऐसा नहीं है जिसमें धर्म या ईश्वर या किसी शक्ति में विश्वास की धारणा न पायी जाती हो |
ई. बी. टायलर (E. B. Tylor) अपनी पुस्तक प्रीमिटिव कल्चर (Primitive Culture) में धर्म को व्याख्यायित करते हुए कहते हैं कि धर्म आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास है (Religion is the belief in spiritual being)
समाजशास्त्र में धर्म सत्य है या नहीं, इस बात पर गौर नहीं किया जाता | बल्कि यह देखा जाता है कि इसे मानने वाले व्यक्तियों के सामूहिक जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है |
जॉनसन (Johnson) के अनुसार समाजशास्त्री इस बात में रुचि नहीं लेता कि परमात्मा का अस्तित्व है या नहीं, बल्कि इस बात में रुचि लेता है कि किस हद तक विभिन्न धर्मों के लोग इसे सच्चाई के रूप में स्वीकार करते हैं |
फ्रेजर (Frazer) अपनी पुस्तक गोल्डन बाऊ (Golden Bough) में लिखते हैं कि धर्म से मेरा तात्पर्य मनुष्य से श्रेष्ठ उन शक्तियों की संतुष्टि अथवा आराधना करना है जिनके बारे में व्यक्तियों को यह विश्वास है कि वह प्रकृति और मानव जीवन को नियंत्रित करती है,तथा उन्हें मार्ग दिखाती है |
जॉनसन (Johnson) के अनुसार धर्म कम या अधिक मात्रा में अलौकिक शक्तियों, तत्वों तथा आत्मा से संबंधित विश्वासों और आचरणों की एक संगठित व्यवस्था है |
धर्म की विशेषताएं (Characteristics of Religion)
(1) अलौकिक शक्ति में विश्वास
(2) पवित्रता की धारणा
(3) धार्मिक कर्मकाण्ड
(4) प्रार्थना, पूजा एवं आराधना
(5) भावनात्मक एवं मानसिक पक्ष
धर्म की उत्पत्ति (Origin of Religion)
धर्म की उत्पत्ति से संबंधित विभिन्न सिद्धांत निम्न है –
(1) आत्मावाद (Animism) – यह सिद्धांत ई. बी. टायलर (E.B.Tylor) द्वारा दिया गया है | उनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति स्वयं की आकृति या अपने मृत नातेदार को स्वप्न में देखता है जो इस बात का प्रमाण है कि आत्मा का अस्तित्व है |आदिम जनजातियाँ ऐसा मानती हैं कि आत्मा केवल मनुष्य में ही नहीं बल्कि अन्य में भी जैसे – जानवर ,पौधे, चट्टान आदि में होती है | टायलर के अनुसार मनुष्य के आत्मा का विचार ही धर्म की उत्पत्ति का प्रारंभिक स्वरूप रहा है |
जी. एस. घुरिये (G. S. Ghuriye) के अनुसार हिंदू एवं जनजाति दोनों आत्मा में विश्वास करते हैं, इसलिए इन्होंने जनजातियों को पिछड़े हिंदू (Backward Hindu) कहा है |
(2) जीव-सत्तावाद (Animatism) – यह सिद्धांत प्रियूष का है, जिसे विस्तृत अध्ययन कर मैरेट (Marett) ने मानावाद में परिवर्तित कर दिया | मैरेट ने अपने मलेनेशिया के अध्ययन में यह पाया कि वहाँ के लोग जीव एवं निर्जीव दोनों में शक्ति का अनुभव करते हैं, जिसे मैरट ने माना से संबोधित किया | माना में विश्वास ही मानावाद है |
(3) प्रकृतिवाद (Naturism) – इस सिद्धांत का प्रतिपादन मैक्स मूलर (Max Muller) ने किया है | उनके अनुसार आदि मानव प्राकृतिक शक्तियों जैसे भूकंप, बाढ़, सूखा आदि से भयभीत था एवं उसे विश्वास था कि इसकी पूजा करके इसके अनिष्ट से बचा जा सकता है | आज भी सूर्य, बृक्ष आदि प्राकृतिक शक्तियों की पूजा होती है | मूलर के अनुसार प्रकृति ही धर्म की उत्पत्ति का आरंभिक स्वरूप था |
(4) धर्म का समाजिक सिद्धांत (Social Theory of Religion) – इस सिद्धांत का प्रतिपादन दुर्खीम ने किया है | उन्होंने धर्म की उत्पत्ति के प्रारंभिक स्वरूप को जानने के लिए ऑस्ट्रेलिया की अरुण्टा (Arunta) जनजाति का अध्ययन किया एवं पाया कि वहाँ के लोग सांसारिक वस्तुओं को दो भागों पवित्र (Sacred) एवं अपवित्र (Profane) में बाँटतें हैं | पवित्र वस्तुओं को सामान्य जीवन से अलग रखा जाता है, जिसे वे टोटम (Totem) कहते हैं | टोटम नदी, वृक्ष, जानवर आदि कुछ भी हो सकता है | टोटम के प्रतीक के आधार पर जनजातीयों का एक समूह दूसरे से बँटा होता है | दुर्खीम के अनुसार टोटम ही धर्म की उत्पत्ति का प्रारंभिक स्वरूप था |
(5) फ्रेजर का सिद्धांत (Frazer’s Theory) – फ्रेजर ने अपनी पुस्तक गोल्डन बाउ (Golden Bough) में लिखते हैं कि आदि मानव प्राकृतिक शक्तियों से भयभीत था | लेकिन उस पर नियंत्रण पाने के लिए जिन अनुष्ठानों एवं कर्मकाण्डो का सहारा लिया उसे जादू कहा गया | किन्तु जादू की असफलता के बाद प्रार्थना और आराधना की जिन पद्धतियों का विकास हुआ उन्हीं से धर्म की उत्पत्ति हुई |