समाजशास्त्र की उत्पत्ति पश्चिमी यूरोप के फ्रांस देश में हुई| इसका कारण फ्रांसीसी एवं औद्योगिक क्रांति था| उस समय का यूरोपीय समाज की शोषणकारी व्यवस्था एवं समस्याओं ने; कॉम्टे को एक नए विषय के बारे में सोंचने को विवश कर दिया| पुनर्जागरण एवं प्रबोधन ने इसमें प्रेरक का कार्य किया है|
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समाजशास्त्र की उत्पत्ति/samajshastra ki utpatti
- एक विषय के रूप में समाजशास्त्र का जन्म 1838 में हुआ| यह मुख्यतः औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप उत्पन्न विषम परिस्थितियों के अध्ययन के लिए अस्तित्व में आया|
- समाजशास्त्र के उदय का आधार एवं कारणों को फ्रांसीसी क्रांति एवं औद्योगिक क्रांति में देखा जा सकता है| जिसने यूरोप की सामंतवादी व्यवस्था को हटाकर एक नई एवं आधुनिक व्यवस्था को जन्म दिया|
समाजशास्त्र का एतिहासिक परिप्रेक्ष्य
ऐतिहासिक रूप से समाजशास्त्र की उत्पत्ति आगस्त कॉम्टे से मानी जाती है| लेकिन समाज की प्रकृति के बारे में विचार हमें प्लेटो की पुस्तक रिपब्लिक(Republic) एवं अरस्तू की पॉलिटिक्स (Politics ) में मिलता है, जिसमें अनेक सामाजिक घटनाओं ,प्रथाअों ,सामाजिक संबंधों एवं सामाजिक संस्थाओं का वर्णन किया गया था, किन्तु उनके विचारों में वैज्ञानिकता का आभाव था |
प्लेटो के अनुसार –
- व्यक्ति का व्यवहार समाज की प्रकृति पर निर्भर करता है|
- व्यक्ति का व्यवहार उसी तरह होगा, जिस तरह समाज होगा|
- मानव व्यवहार का जन्म उस समाज की उपज है, जिसमें व्यक्ति ने जन्म लिया है|
- समाज के चार भाग – (1 ) शासक (2) योद्धा (3) कृषक (4) दास
अरस्तू के अनुसार – (प्लेटो के मत के विपरीत अरस्तू लिखते हैं -)
- समाज के स्वरुप का निर्धारण व्यक्ति के व्यक्ति के स्वभाव पर निर्भर करता है|
- जिस प्रकार व्यक्तियों की क्रियाविधि होगी; उसी प्रकार की सामाजिक संरचना का निर्माण होगा|
- समाज के तीन भाग – (1) संरक्षक (2) सहायक (3) मजदूर
रूसो अपनी पुस्तक “The Social Contract” में लिखते हैं –
- समाज, संस्कृति आदि का निर्माण व्यक्तियों की इच्छा का प्रतीक है|
- समाज का प्रत्येक व्यक्ति सुख, सुविधा एवं सुरक्षा पाना चाहता है|
- इच्छाओं की पूर्ति के लिए व्यक्तियों ने राज्य, कानून, पुलिस, जेल आदि का निर्माण किया|
- राज्य के निर्माण से व्यक्ति धीरे-धीरे बन्धनों में जकड़ता गया|
- सामाजिक अनुबंध द्वारा मनुष्य ने अपने प्राकृतिक स्वतंत्रता खो दिया है|
- व्यक्ति अब उन सभी वस्तुओं को नहीं प्राप्त कर सकता, जिन्हे प्राप्त करना पहले उसके वश में था|
- यहीं से निजी संपत्ति का उदय होता है|
- मनुष्य जन्म से स्वतंत्र है, किन्तु वह सर्वत्र जंजीरों से बँधा हुआ है|
इसके पश्चात 18वीं शताब्दी तक समाज के बारे में कोई विशेष चिंतन नहीं हुआ; किंतु औद्योगिक क्रांति (1760) एवं फ्रांसीसी क्रांति (1789) के परिणामस्वरुप समाज से संबंधित विचार दिखाई देने लगे एवं समाज के विज्ञान होने की आवश्यकता को मान्यता मिलने लगी | ये परिस्थितियां फ्रांसीसी दार्शनिक सेंट साइमन तथा उनके शिष्य एवम् सचिव अागस्त काम्टे को मानवीय समाज के बारे मे वैज्ञानिक आधार पर सोचने के लिए प्रेरणा प्रदान किए |
इन दार्शनिकों के अनुसार नया विज्ञान प्राकृतिक नियमों की तरह सामाजिक जगत् के बारे में नियमों की खोज करेगा ,तब हम सामाजिक परिवर्तन के सामान्य नियम को निर्धारित कर सकेंगे जैसा कि न्यूटन के भौतिक विज्ञान एवं डार्विन के जीव विज्ञान में पाया जाता है|
पुनर्जागरण (Renaissance)
पुनर्जागरण का तात्पर्य पुनर्जन्म से हैं| यूरोपीय इतिहास में मध्य युग एवं आधुनिक युग के बीज के समय को पुनर्जागरण कहा गया| जिसमें वाणिज्यिक क्रांति एवं औद्योगिक क्रांति ने यूरोप में कला, संस्कृति, साहित्य, पेंटिंग, विज्ञान आदि क्षेत्रों में बहुत विकास हुआ| इस विकास के द्वारा लोगों की भावना एवं सोच को नया जीवन मिला; इसी नवीन स्थिति को पुनर्जागरण (Renaissance) कहा गया|
प्रबोधन (Enlightenment)
18वीं शताब्दी में यूरोप में एक दार्शनिक एवं बौद्धिक आंदोलन चल रहा था जो मनुष्य की तार्किक शक्ति एवं नवाचार में विश्वास करता था| इसी को प्रबोधन (Enlightenment) नाम दिया गया| इस आंदोलन की वजह से यूरोप में औद्योगिक एवं फ्रांसीसी जैसी दो महान क्रांतियाँ हुई, जिसने पुराने सामंतवादी समाज के स्थान पर एक नवीन समाज की स्थापना की| इतिहासकारों के अनुसार प्रबोधन का युग 1715 से 1789 तक था|
- समाजशास्त्र की उत्पत्ति की यदि विवेचना करें तों; यूरोपीय समाज की जर्जर सामाजिक,एवं आर्थिक व्यवस्था ने आम जनता को तार्किक आधार पर सोंचने एवं व्यवस्था को बदलने को मजबूर कर दिया|
(जैसे- यदि आप पूरी तरह अपने देश और समाज के प्रति समर्पित हैं| आप अपने से बड़ों की बातों का अक्षरशः पालन करते है| अपनी क्षमता अनुसार काम करते हैं| दूसरों की खुशियों में ही अपने ख़ुशी ढूढते हैं| बस आपके इसी ईमानदारी और अच्छाई को यदि कुछ लोग आपकी कमजोरी समझने लगें| आपसे हर काम करवाने के बाद भी आपको यदि भोजन की आपूर्ति भी पूरी तरह से न हो| तब निश्चित रूप से आप उस व्यवस्था पर धीरे-धीरे संदेह करने लगेंगे| और एक ऐसा भी दिन आ सकता है जब आप उस व्यवस्था को बदलना चाहें|)
- बस यही स्थिति फ्रांस की थी| जहाँ की जनता ने अपने दीन-हीन स्थिति से मुक्ति पाने के लिए विद्रोह किया; एवं एक नई समाजिक व्यवस्था को जन्म दिया| इस नई सामाजिक एवं राजनितिक व्यवस्था ने नए सामाजिक समस्याओं को जन्म दिया| जिसका समुचित अध्ययन करने के लिए कोई विषय मौजूद नहीं था|
- सन् 1838 में, अागस्त कॉम्टे ने सामाजिक घटनाओं के अध्ययन के लिए सामाजिक भौतिकी (Social Physics) शब्द का प्रयोग किया; जिसे बाद में बदलकर समाजशास्त्र कर दिया |
- कॉम्टे के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था एवं प्रगति (Social Order and Progress) का विज्ञान है | कॉम्टे ने विज्ञानों का संस्तरण भी प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने गणितशास्त्र को प्रथम एवं समाजशास्त्र को अंतिम स्थान दिया |
Google Questions-
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समाजशास्त्र की उत्पत्ति क्या है?
समाजशास्त्र विषय की उत्पत्ति एक प्रघटना है| जब यूरोप में नई –नई सामाजिक समस्याएँ तेजी से बढ़ने लगीं, उस समय कोई ऐसा विषय नहीं था; जो समाज का सम्पूर्णता में अध्ययन कर सके| साथ ही समस्याओं का समुचित समाधान प्रस्तुत कर सके| ऐसे में सन् 1838 में फ्रांसीसी विचारक अगस्त कॉम्टे ने समाजशास्त्र विषय की नीव रखी|
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समाजशास्त्र के जनक कौन है?
समाजशास्त्र के जनक अगस्त कॉम्टे हैं|
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समाजशास्त्र का उदय कहाँ हुआ?
समाजशास्त्र विषय का उदय फ्रांस में सन् 1838 में कॉम्टे द्वारा किया गया|
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समाजशास्त्र का जन्म कैसे हुआ?
समाजशास्त्र का जन्म यूरोपीय समाज की तत्कालीन आवश्यकता थी| फ्रांसीसी एवं औद्योगिक क्रांति के बाद तेजी से बदलते समाज एवं इसकी समस्याओं का अध्ययन करने के लिए कॉम्टे ने 1838 में इस विषय की नीव रखी|
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समाजशास्त्र का जन्म कब और कहाँ हुआ?
समाजशास्त्र का जन्म पश्चिमी यूरोप के एक देश फ्रांस में हुआ| कॉम्टे ने इस विषय को सन् 1838 में जन्म दिया|
समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा
Objective Type QuestionsOne Liner Questions/Answers
Nice & thanku so much
Welcome Radhika
Rohini Thakre bhubhara
Very good 2
Thanks Neeraj
Very good
Very very nice sir
Samajsastr ki utpatte kese Hui